13.2.22

डॉ.दयारामजी आलोक के व्यक्तित्व और कृतित्व पर श्री रमेश चंद्रजी राठौर "आशुतोष" का आलेख, Article on personality and work of Dr. Dayaram Aalok by Shri Ramesh Chandraji Makwana




                           




समाज सेवी डॉ. दयारामजी आलोक से साक्षात्कार के कतिपय अंश:-प्रस्तोता-रमेश चन्द्र आशुतोष 

समाज सेवी

डॉ. दयारामजी आलोक

से

रमेशचंद्रजी राठौर आशुतोष 

का

साक्षात्कार

 यह लेख geni.com पर सन 2012 मे प्रकाशित हुआ था ,यहाँ संशोधित रूप मे प्रस्तुत है| 

आशुतोष-

दामोदर दर्जी समाज (darji samaj)के परिवारों की जानकारी की इस किताब के लिये आपसे साक्षात्कार लेना मेरा सौभाग्य है। आप अपना सक्षिप्त जीवन परिचय दें।

जन्म व शिक्षा 

 शामगढ कस्बे में पुरालालजी राठौर के कुल में जन्म 11 अगस्त सन 1940 ईस्वी। रेडीमेड वस्त्र बनाकर बेचना पारिवारिक व्यवसाय था। अत्यंत साधारण आर्थिक हालात।हाई स्कूल परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करने के बाद सन १९६१ में शासकीय सेवा में अध्यापक के पद पर नियुक्त।सन 1969 में राजनीति विषय से एम.ए. किया। चिकित्सा विषयक उपाधियां आयुर्वेद रत्न और होम्योपैथिक उपाधि D.I.Hom( London) अर्जित कीं।

आशुतोष -

आपने दामोदर दर्जी महासंघ कब और किस उद्धेश्य से स्थापित किया?

दामोदर दर्जी युवक संघ  का गठन कब और क्यों किया गया?



                            दामोदर दर्जी युवक संघ के गठन का दस्तावेज़ 1965


दामोदर दर्जी युवक संघ के गठन पर दर्जी समाज की स्वीकृति के हस्ताक्षर का डोकूमेंट



समाज सेवी
डॉ. दयारामजी आलोक
से
समाजसेवी रमेश चंद्रजी राठौर आशुतोष जी
का
साक्षात्कार
यह लेख geni.com पर सन 2012 मे प्रकाशित हुआ था ,यहाँ संशोधित रूप मे प्रस्तुत है| 

आशुतोष -
दामोदर दर्जी समाज (darji samaj)के परिवारों की जानकारी की इस किताब के लिये आपसे साक्षात्कार लेना मेरा सौभाग्य है। आप अपना सक्षिप्त जीवन परिचय दें।

जन्म व शिक्षा 

शामगढ कस्बे में पुरालालजी राठौर के कुल में जन्म 11 अगस्त सन 1940 ईस्वी। रेडीमेड वस्त्र बनाकर बेचना पारिवारिक व्यवसाय था। अत्यंत साधारण आर्थिक हालात।हाई स्कूल परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करने के बाद सन १९६१ में शासकीय सेवा में अध्यापक के पद पर नियुक्त।सन 1969 में राजनीति विषय से एम.ए. किया। चिकित्सा विषयक उपाधियां आयुर्वेद रत्न और होम्योपैथिक उपाधि D.I.Hom( London) अर्जित कीं।

आशुतोष-

आपने दामोदर दर्जी महासंघ कब और किस उद्धेश्य से स्थापित किया?

दामोदर दर्जी महासंघ का प्रथम अधिवेशन 

  दामोदर दर्जी महासंघ संघ का प्रथम अधिवेशन 14 जुन 1965 को शामगढ में पूरालालजी राठौर के निवास पर हुआ ।अधिवेशन में 134 दर्जी बंधु उपस्थित हुए। इस अधिवेशन मे श्री रामचन्द्रजी सिसोदिया को अध्यक्ष ,डॉ.दयारामजी आलोक को संचालक,और श्री सीतारामज्री संतोषी को कोषाध्यक्ष बनाया गया। सदस्यता अभियान चलाकर ५० नये पैसे वाले करीब ७२५ सदस्य बनाये गये।

आशुतोष -

दामोदर दर्जी समाज के डग स्थित श्री सत्यनारायण मंदिर का जीर्णोद्धार और उद्ध्यापन का काम आपने किस तरह संचालित किया? संक्षेप में बताएं।

दामोदर 
दर्जी समाज के डग मंदिर मे भगवान सत्यनारायण की मूर्ति की प्राण -प्रतिष्ठा 

डग मंदिर की भगवान सत्यनारायण की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा अनुष्ठान करवाने के उद्देश्य से मैं 15 मई 1966 के दिन डग गया था। डग के स्थानीय दर्जी बंधुओं की मिटिंग मन्दिर में बुलाइ गई। लंबे विचार विमर्श के बाद डग के सभी दर्जी बंधुओं( गोरधनलालजी सोलंकी,बालमुकंदजी पंवार,नाथूलालजी सोलंकी ,रामकिशनजी चौहान,गगारामजी,सालगरामजी सोलंकी, भगवानजी सोलंकी,रतनलालजी पँवार,नाथूलालजी सोलंकी ,भंवरलालजी सोलंकी,कन्हैयालालजी पंवार, चेनाजी राठौर आदि) ने एक लिखित प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर मंदिर उद्ध्यापन का कार्य मेरे नेतृत्व में दामोदर दर्जी युवक संघ के सुपर्द कर दिया। उस समय मेरी उम्र यही कोई २५ साल की थी। इतनी कम उम्र में डग के बुजुर्ग दर्जी बंधुओं का मंदिर के उद्ध्यापन जैसे बडे और महत्वपूर्ण कार्य के लिये विश्वास और आशीर्वाद  हासिल कर लेना मेरी जिंदगी की सबसे बडी सफ़लताओं में से एक है।





सन 1965 का वह दस्तावेज दर्जी बंधुओं के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं।
यह डाक्यूमेंट दर्जी महासंघ के कार्यालय में मौजूद है।
 बंधुओं,मंदिर में मूर्ति की प्रतिष्ठा करने की कठिन जिम्मेदारी मैने परमात्मा के आशीर्वाद ,समाज के बुजुर्ग,प्रतिष्ठित दर्जी बंधुओं तथा दामोदर दर्जी महासंघ के उत्साही सदस्यों के माध्यम से निभाई और समाज के लोगों के आर्थिक सहयोग से 23 जून 1966 के दिन डग में भगवान सत्यनारायण की मूर्ति का प्राण प्रतिष्ठा याने भव्य उध्यापन समारोह आयोजित किया गया।उल्लेखनीय है कि इसी दिन दामोदर दर्जी युवक संघ का दूसरा जनरल अधिवेशन भी संपन्न हुआ था।

आशुतोष :--

 सामुहिक विवाह सम्मेलन की नींव डालते हुए आपने रामपुरा में सन 1981 में प्रथम सामुहिक विवाह सम्मेलन आयोजित कर समाज को एक नई दिशा दी है। इसके बारे में कुछ बताएंगे।

डॉ.दयाराम आलोक :-- 

 हमारे दर्जी समाज की आर्थिक बुनियाद सनातन काल से कमजोर रही है। सामूहिक विवाह से धन की बचत होती है । राजस्थान में सामूहिक विवाह होने लगे थे लेकिन मध्यप्रदेश में ऐसे आयोजन शुरू नहीं हुए थे। अत: मन में विचार आया कि रामपुरा नगर में दर्जी समाज का प्रथम सामूहिक विवाह(group marriage) सम्मेलन का आयोजन किया जावे।
 
दर्जी समाज का प्रथम सामूहिक विवाह सम्मेलन ,रामपुरा 

रामपुरा के उत्साही युवकों के सक्रिय सहयोग से 1981 में मंदसौर जिले का प्रथम सामूहिक विवाह सम्मेलन रामपुरा नगर मे आयोजित किया गया जो अत्यंत सफ़ल रहा। वह ऐसा समय था जब लोग सम्मेलन के नाम से नाक-भोंह सिकोडते थे और सम्मेलन को अच्छी निगाह से नहीं देखते थे। बाद में धीरे- धीरे सम्मेलन के प्रति लोगों की रूचि बढने लगी और अन्य स्थानों पर भी दर्जी समाज के सामूहिक विवाह के आयोजन होने लगे। अब आप देख ही रहे हैं कि प्रति वर्ष या हर दूसरे साल सम्मेलन होने लगे हैं। दामोदर दर्जी महासंघ के बेनर तले 9 सामूहिक विवाह सम्मेलन हो चुके हैं। नवां सामूहिक विवाह सम्मेलन शामगढ में आयोजित किया गया।
यह जानकारी दर्जी समाज में सामूहिक विवाह सम्मेलन की शुरुआत और उसकी सफलता को दर्शाती है। यह एक महत्वपूर्ण कदम था जिसने समाज में विवाह समारोहों के आयोजन को एक नई दिशा दी।
रामपुरा में 1981 में आयोजित पहले सामूहिक विवाह सम्मेलन की सफलता ने समाज में इस प्रकार के आयोजनों के लिए आधार तैयार किया। इसके बाद, दामोदर दर्जी महासंघ के बैनर तले 9 सामूहिक विवाह सम्मेलन हो चुके हैं, जो समाज में इस प्रकार के आयोजनों की बढ़ती लोकप्रियता को दर्शाता है।
यह पहल न केवल समाज में विवाह समारोहों के आयोजन को आसान बनाती है, बल्कि यह समाज के युवाओं को एक मंच भी प्रदान करती है जहां वे अपने जीवन साथी की तलाश कर सकते हैं।
इस पहल के पीछे आपका योगदान और समर्थन अत्यधिक महत्वपूर्ण है, और आपको इस कार्य के लिए बहुत-बहुत बधाई


आशुतोष :--

 मैंने आपकी कई कविताएं पत्र-पत्रिकाओं में पढी हैं । अपनी साहित्यिक गतिविधियों पर प्रकाश डालें।

डॉ.दयाराम जी आलोक की साहित्यिक गतिविधियां -

डॉ. दयाराम जी आलोक की साहित्यिक गतिविधियाँ बहुत ही प्रभावशाली और व्यापक हैं। उनकी साहित्यिक यात्रा की कुछ मुख्य बातें निम्नलिखित हैं:

1. प्रेरणा: उनके अग्रज डॉ. लक्ष्मीनारायणजी अलौकिक की साहित्यिक गतिविधियों ने उन पर गहरा प्रभाव डाला।

2. कविता लेखन की शुरुआत: 1960 के दशक में उन्होंने कविता लिखना शुरू किया।

3. पहली प्रकाशित रचना: उनकी पहली कविता "तुमने मेरी चिर साधों को झंकृत और साकार किया है" 1963 में बिकानेर से प्रकाशित पत्रिका "स्वास्थ्यसरिता" में प्रकाशित हुई थी।

4. व्यापक प्रकाशन: उनकी कविताएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं जैसे कादंबिनी, दैनिक नव ज्योति, दैनिक जागरण, इन्दौर समाचार, प्रजादूत, प्रभात किरण, मालव समाचार, ध्वज मंदसौर, नई विधा, डिम्पल आदि में नियमित रूप से प्रकाशित होती रही हैं।

5. कविताओं की संख्या: अब तक उनकी लगभग 150 कविताएं प्रकाशित हो चुकी हैं।

डॉ. दयाराम जी आलोक की साहित्यिक यात्रा उनकी सृजनात्मकता और साहित्य के प्रति समर्पण को दर्शाती है
 
आशुतोष  :-- 

आप संपूर्ण दर्जी परिवारों की जानकारी एकत्र कर रहे हैं ,इसके पीछे आपका क्या प्रयोजन है।

दर्जी परिवारों की जानकारी संगृह करना -

 जिस समाज के हम अंग हैं उसके बारे में जानकारी एकत्र करना उत्तम कार्य है। सन 1965 से ही आलोकजी  ने दर्जी परिवारों की जानकारी बकायदा निर्धारित छपे हुए फ़ार्म में लिखनी शुरू कर दी थी। आज महासंघ के दफ़्तर में समाज के सभी परिवारों की जानकारी उपलब्ध है।
यह पाठ दर्जी समाज के लिए रमेशचंद्रजी  राठोर आशुतोष और भवानीशंकरजी चौहान सुवासरा के महत्वपूर्ण योगदान को दर्शाता है। इन दोनों व्यक्तियों ने समाज की जानकारी एकत्र करने और प्रकाशित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

रमेशचंद्र राठोर आशुतोष के योगदान:

1. स्मारिकाओं का संपादन: उन्होंने दर्जी समाज के परिवारों की जानकारी की दो स्मारिकाओं का सफ़ल संपादन किया।
2. प्रकाशन: उन्होंने 1993 और 2000 में दो स्मारिकाएं प्रकाशित कीं, जो आज समाज की जानकारी प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण संदर्भ ग्रंथ हैं।

भवानीशंकरजी चौहान सुवासरा के योगदान:

1. वित्त पोषण: उन्होंने "समाज ज्ञान गंगा" के प्रकाशन के लिए वित्त पोषण प्रदान किया।
2. जानकारी एकत्र करना: उन्होंने गांव-गांव जाकर दर्जी बंधुओं की जानकारी एकत्र की।
3. मोटर साइकल यात्रा: उन्होंने मोटर साइकल के माध्यम से समाज की यात्रा की और जानकारी एकत्र की।
इन दोनों व्यक्तियों के योगदान की प्रशंसा करना उचित है, क्योंकि उन्होंने समाज की जानकारी एकत्र करने और प्रकाशित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनका कार्य दर्जी समाज के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान है, और उनकी प्रशंसा करना उचित है
आशुतोष- अंत में, आप दर्जी समाज को क्या संदेश देना चाहेंगे?
डॉ. दयाराम आलोक जी का दर्जी समाज के नाम संदेश में कई महत्वपूर्ण बातें कही गई हैं जो समाज के विकास और सुधार के लिए आवश्यक हैं। निम्नलिखित बिंदुओं में उनके संदेश को सारांशित किया जा सकता है:
1. शिक्षा पर जोर:
डॉ. आलोक जी ने दर्जी समाज के बच्चों की पढ़ाई पर जोर दिया है ताकि वे अच्छी नौकरी प्राप्त कर सकें और समाज की उन्नति में योगदान कर सकें।
2. टेलरिंग कौशल:
उन्होंने बच्चों को अच्छे टेलर मास्टर से काम सिखाने की सलाह दी है ताकि वे अपने पारंपरिक धंधे में भी उत्कृष्टता प्राप्त कर सकें।
3. सगाई और शादी:
उन्होंने कम उम्र में सगाई और शादी के खिलाफ बात की है और सगाई टूटने पर शत्रुता का भाव रखने के खिलाफ भी कहा है।
4. मौसर प्रथा:
उन्होंने मौसर प्रथा को गरीब दर्जी समाज के लिए आर्थिक बोझ बताया है और इसके लिए सीमित आमंत्रित लोगों की सलाह दी है।
5. सामूहिक विवाह:
उन्होंने सामूहिक विवाह सम्मेलन में शादी करने की सलाह दी है ताकि धन की बचत हो सके।
6. योग्य वर की तलाश:
उन्होंने पिताओं को अपनी पुत्रियों के लिए योग्य वर की तलाश करने की सलाह दी है, चाहे वह समाज के बाहर से ही क्यों न हो।
7. प्रतिबंध के खिलाफ:
उन्होंने दर्जी समाज में बाहरी दर्जियों को लड़कियां देने पर प्रतिबंध लगाने के खिलाफ बात की है, यह कहते हुए कि यह गैरकानूनी और लड़कियों के लिए योग्य वर की तलाश में बाधक होगा।
8. आर्थिक सुधार:
उन्होंने समाज के लोगों को अपनी आर्थिक व्यवस्था सुधारने और खुद के मकान और दुकान की व्यवस्था करने की सलाह दी है।
9. आचरण सुधार:
उन्होंने समाज के लोगों को अपने आचरण सुधारने की सलाह दी है ताकि लड़कों के कुंवारे रह जाने की नौबत न आए।
10. लड़की के पैसे लेने के बारे में:
उन्होंने कहा है कि गरीब पिता द्वारा लड़की के पैसे लेना उसकी लाचारी अथवा मजबूरी हो सकती है,इसे गंभीर सामाजिक अपराध की श्रेणी मे रखना उचित नहीं|  
आशुतोष : अपनी धार्मिक विचारधारा के बारे में कुछ बतायेंगे?
डॉ. दयाराम आलोक जी की धार्मिक मान्यताएं बहुत ही व्यापक और तर्कसंगत हैं। उनके विचारों को निम्नलिखित बिंदुओं में सारांशित किया जा सकता है:
1. एकता की मान्यता: वे मानते हैं कि सभी धर्मों का ईश्वर एक है, लेकिन लोगों ने अपनी सुविधा के अनुसार देवी-देवताओं का निर्माण किया है।
2. धर्म ग्रंथों की आलोचना: वे मानते हैं कि कोई भी धर्म ग्रंथ ईश्वर द्वारा नहीं लिखा गया है, इसलिए उन पर अंधविश्वास करने से बचना चाहिए।
3. तर्कशक्ति का उपयोग: वे तर्कशक्ति का उपयोग करके किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने की सलाह देते हैं।
4. धार्मिक पाखंड से दूर रहना: वे धार्मिक पाखंड से दूर रहने की सलाह देते हैं।
5. निराकार ईश्वर: वे निराकार ईश्वर की अवधारणा को साकार (मूर्ति रूप) पर अधिमान्यता देते हैं।
6. कण-कण में भगवान: वे मानते हैं कि कण-कण में भगवान होने का सिद्धांत ज्यादा उचित लगता है।
7. स्वामी दयानंद सरस्वती और संत कबीर का प्रभाव: वे स्वामी दयानंद सरस्वती और संत कबीर के आध्यात्मिक सिद्धांतों को मानव जगत के कल्याण के लिए महत्वपूर्ण मानते हैं।
इन विचारों से यह स्पष्ट है कि डॉ. दयाराम आलोक जी एक तर्कसंगत और व्यापक दृष्टिकोण वाले व्यक्ति हैं जो धार्मिक एकता और समझ को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत हैं
 डॉ. दयाराम आलोक जी के अनुसार धर्म का मर्म निम्न दोहों में पूरी तरह समाविष्ट है---

*चार वेद छ: शास्त्र में बात लिखी है दोय,
दुख दीन्हे दुख होत है सुख दीन्हे सुख होत॥

*निर्बल को न सताईये जा की मोटी हाय,
मुए भेड की खाल से लोह भस्म हुई जाय ॥

*कांकर पाथर जोरि के मस्जिद लई चुनाय,
ता चढि मुल्ला बांग दे बहरा हुआ खुदाय?

*पाहन पूजे हरि मिले तो मैं जा पूजूं पहाड
या ते तो चाकी भली पीस खाय संसार॥

*कस्तूरी कुंडल बसे मृग ढूंढे वन मांहि
तैसे घट-घट राम है दुनिया देखे नाहीं॥

*बकरी पाती खात है ताकी खोली खाल
जो नर बकरी खात है उनको कौन हवाल?
डॉ. दयाराम आलोक जी के अनुसार, कबीर के ये दोहे धर्म के मूल संदेश को बहुत ही सुंदर तरीके से व्यक्त करते हैं। इन दोहों में निहित मुख्य बातें निम्नलिखित हैं:

1. कर्म का महत्व: पहले दोहे में कहा गया है कि जो दुख देते हैं, उन्हें दुख मिलता है, और जो सुख देते हैं, उन्हें सुख मिलता है। यह कर्म के सिद्धांत को दर्शाता है।

2. निर्बलों का सम्मान: दूसरे दोहे में निर्बलों का सम्मान करने और उन्हें सताने से बचने की सलाह दी गई है।

3. भेदभाव का विरोध: तीसरे दोहे में मस्जिद और मुल्ला के उदाहरण से यह बताया गया है कि भेदभाव और धर्म के नाम पर अन्याय करना गलत है।

4. ईश्वर की सर्वव्यापकता: चौथे दोहे में कहा गया है कि ईश्वर हर जगह है, चाहे वह पाहन हो या पहाड़। यह ईश्वर की सर्वव्यापकता को दर्शाता है।

5. ईश्वर की अनुभवगम्यता: पांचवें दोहे में कहा गया है कि ईश्वर हर जीव में है, लेकिन लोग इसे नहीं देखते। यह ईश्वर की अनुभवगम्यता को दर्शाता है।

6. आंतरिक शुद्धता: छठे दोहे में बकरी के उदाहरण से यह बताया गया है कि बाहरी आडंबर से कुछ नहीं होता, आंतरिक शुद्धता ही महत्वपूर्ण है।
इन दोहों में कबीर ने धर्म के मूल संदेश को बहुत ही सुंदर तरीके से व्यक्त किया है, जो हमें कर्म, सम्मान, भेदभाव का विरोध, ईश्वर की सर्वव्यापकता, और आंतरिक शुद्धता की ओर प्रेरित करते हैं

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