दर्जी वस्त्र सीने की विशिष्ट योग्यता रखने वाला व्यक्ति होता है। वह व्यक्ति के शरीर की माप के अनुसार कपड़ा सीकर उसे वस्त्र का रूप देता है।
दर्जी इतिहास:
हिंदू दर्जी समुदाय का कोई केंद्रीय इतिहास नहीं है। यह उस समुदाय के लोगों पर निर्भर करता है जहां वे रह रहे थे। कुछ लोगों से अपने इतिहास से संबंधित प्राचीन और मध्यकालीन युग , कुछ से संबंधित Tretayuga (चार में से एक युग में वर्णित हिंदू प्राचीन ग्रंथों की तरह, वेद , पुराण , आदि)। लेकिन सभी हिंदू दर्जी समुदाय की उत्पत्ति क्षत्रिय वर्ण से हुई है। क्षत्रिय होने का प्रमाण गोत्र है, इनके गोत्र क्षत्रिय वर्ण से हैं।
दर्जी शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?
सिलाई के कार्य से जुड़े होने के कारण इनका नाम दर्जी पड़ा. कहा जाता है कि “दर्जी” शब्द की उत्पत्ति फारसी भाषा के शब्द “दारजान” से हुई है, जिसका अर्थ होता है- “सिलाई करना”. हिंदुस्तानी भाषा में दर्जी का शाब्दिक अर्थ है- “टेलरिंग का काम करने वाला या सिलाई का काम करने वाला’. कहा जाता है कि पंजाबी दर्जी हिंदू छिम्बा जाति से धर्मांतरित हुए हैं, और उनके कई क्षेत्रीय विभाजन हैं जैसे- सरहिंदी, देसवाल और मुल्तानी. पंजाबी दर्जी (छिम्बा दारज़ी) लगभग पूरी तरह सुन्नी इस्लाम के अनुयाई हैं. इदरीसी दर्जी दिल्ली सल्तनत के शुरुआती दौर में दक्षिण एशिया में बस गए थे. यह भाषाई आधार पर भी विभाजित हैं. उत्तर भारत में निवास करने वाले उर्दू, हिंदी समेत विभिन्न भाषाएं बोलते हैं, जबकि पंजाब में रहने वाले पंजाबी भाषा बोलते हैं.
जाति इतिहास लेखक डॉ.दयाराम आलोक के मतानुसार गुजरात मे 14 वीं शताब्दी मे जबरन इस्लामिकरण और तत्कालीन इस्लामिक शासकों द्वारा हिंदुओं के प्रति हिंसक घटनाओं से प्रताड़ित होकर दामोदर वंशीय क्षत्रिय दर्जी समाज जूनागढ़,भावनगर,जामनगर ,लिमड़ी आदि स्थानो को छोड़कर मध्य प्रदेश और राजस्थान मे आ बसे| जो पहिले गुजरात छोड़कर आए वे जूना गुजराती क्षत्रिय दर्जी कहलाए । करीब 125 वर्ष बाद इसी समाज का दूसरा जत्था गुजरात छोड़कर मध्य प्रदेश और राजस्थान के गांवों -शहरों मे बस गया। बाद मे आए दर्जी समुदाय को दामोदर वंशी नए गुजराती क्षत्रीय दर्जी कहा जाने लगा।दामोदर दर्जी समाज के परिवारों की गौत्र क्षत्रियों की है जिससे ज्ञात होता है की इनके पुरखे क्षत्रिय थे। दामोदर वंशी जूना गुजराती "सेठ" उपनाम का उपयोग करते हैं।
काकुस्त,
दामोदर वंशी नया गुजराती दर्जी (अधिकांश लोग मंदसौर,नीमच,प्रतापगढ़ ,रतलाम ,झालावाड़ जिलों मे हैं)
टाँक,
दामोदर वंशी जूना गुजराती. (अधिकांश लोग मध्य प्रदेश ,राजस्थान के कुछ ही जिलों मे बसे हैं)
उड़ीसा के दर्जी महाराणा, महापात्र आदि उपनामो का प्रयोग करते हैं.
भ्रम व भ्रांतियांः-
‘‘दर्जी राजपूत’’ समाज अलग-अलग कहानियों को लेकर बंटा हुआ है। सबसे बड़ी भ्रांति महाराष्ट्र के संत नामदेव जी को दर्जी जाति के आराध्य के रूप में दर्शाया जा रहा है और उन्हें क्षत्रिय कुल से बताया जाता है। ‘‘पवित्र गुरू ग्रंथ साहिब’’ में संकलित सभी संतों के इतिहास को पढ़ने के बाद एवं छीपा समाज द्वारा प्रकाशित पत्रिकाओं एवं संत नामदेव से संबधित अन्य पुस्तकों को पढ़ने के बाद पता चलता हैं कि संत नामदेव जी महाराज का जन्म एक छीपा जाति में हुआ था, जो कपड़े के व्यापार से जुड़े थे तथा संत पीपाजी महाराज एक राजपूत थे, जिन्होने अहिंसक सिलाई कर्म को अपनाया। इस तरह दर्जी जाति एक राजपूत वर्ग - नामदेव छीपा जाति (छपाई करने वाले) से पूरी तरह भिन्न है और आज भी इनके बीच किसी प्रकार का मेल-मिलाप नहीं है, लेकिन सिलाई कार्य को लेकर दोनों जातियो में भ्रम की स्थिति बनी हुई है।
Disclaimer:इस लेख में दी गई जानकारी Internet sources, Digital News papers, Books और विभिन्न धर्म ग्रंथो के आधार पर ली गई है. विषय वस्तु को अपने बुद्धी विवेक से समझे।
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