29.12.17

जूनागढ़ की पावन धरा जहां दर्जी संत दामोदर जी अवतरित हुए.


  जाति इतिहासविद डॉ.दयाराम आलोक के मतानुसार प्राचीन नगर जूनागढ़ (गुजरात) जहां दर्जी समाज के महान संत एवं गुरु दामोदर जी महाराज का आविर्भाव हुआ आज भी दर्जी समाज की आस्था का केंद्र बना हुआ है|जूनागढ़ मे दर्जी समाज के इतिहास की गहराई से खोज की आवश्यकता महसूस की जा रही है| दामोदर वंशीय दर्जी समाज के आराध्य दामोदर जी महाराज के बारे मे अब तक कोई ज्यादा प्रामाणिक जानकारी किसी भी स्रोत से उपलब्ध नहीं हो पाई है|यह चिंतन करने योग्य विषय है| बहरहाल ,हम संत शिरोमणि दामोदर जी के आविर्भाव स्थल जूनागढ़ के बारे मे उपयोगी जानकारी प्रस्तुत कर रहे हैं-
जूनागढ़ शहर के निकट स्थित कई मंदिर और मस्जिदें इसके लंबे और जटिल इतिहास को उद्घाटित करते हैं. जूनागढ़ इतिहास व वास्तुकला की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण शहर है, अपनी हरियाली और नवाबों के समकालीन किलों और महलों के कारण पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है,गिरनार पर्वत पर स्थित जैन, हिंदू, मुस्लिम अनुयायियों को भी बरबस junagarhअपनी ओर खिंचता है.जूनागढ़ गुजरात के सौराष्ट्र इलाके का हिस्सा है.जूनागढ़ गिरनार पहाड़ियों के निचले हिस्से पर स्थित है. इस शहर का निर्माण नौवीं शताब्दी में हुआ था, गिरनार के रास्ते में एक गहरे रंग की बेसाल्ट चट्टान है जिस पर तीन राजवंशों का प्रतिनिधित्व करने वाला शिलालेख अंकित है.




अशोक के शिलालेख (आदेशपत्र)-

गिरनार जाने के रास्ते पर सम्राट अशोक द्वारा लगवाए गए शिलालेखों को देखा जा सकता है. ये शिलालेख विशाल पत्थरों पर उत्कीर्ण हैं. अशोक ने चौदह शिलालेख लगवाए थे. इन शिलालेखों में राजकीय आदेश खुदे हुए हैं. इसके अतिरिक्त इसमें नैतिक नियम भी लिखे हुए हैं. ये आदेशपत्र राजा के परोपकारी व्यवहार और कार्यो का प्रमाणपत्र है. अशोक के शिलालेखों पर ही शक राजा रुद्रदाम तथा [स्कंदगुप्त] के खुदवाए अभिलेखों को देखा जा सकता है. रुद्रदाम ने 150 ई. में तथा स्कंदगुप्त ने 450 ई. में ये अभिलेख खुदवाये थे. इस अभिलेख की एक विशेषता यह भी है कि रुद्रदाम के अभिलेख को ही संस्कृत भाषा का प्रथम शिलालेख माना जाता है.


दामोदर कुंड-




इस पवित्र कुंड के चारों ओर घाट (नहाने के लिए) का निर्माण किया गया है|मान्यता है की दर्जी संत दामोदर जी का इस कुंड से आध्यात्मिक संबंध था| ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस घाट पर भगवान श्री कृष्ण ने महान संत कवि नरसिंह मेहता को फूलों का हार पहनाया था.

अपरकोट किला



माना जाता है कि इस किले का निर्माण यादवों ने द्वारिका आने पर करवाया था (जो कृष्ण भगवान से संबंधित थे). अपरकोट की दीवारें किसी-किसी स्थान पर 20 मीटर तक ऊंची है. किले पर की गई नक्काशी अभी भी सुरक्षित अवस्था में है. इस किले में पश्चिमी दीवार पर दो तोपे लगी हैं. इन तोपों का नाम नीलम और कांडल है. इन तोपों का निर्माण मिस्त्र में हुआ था. इस किले के चारों ओर 200 ईस्वी पूर्व से 200 ईस्वी तक की बौद्ध गुफाएं है.

सक्करबाग प्राणी उद्यान-

जूनागढ़ का यह प्राणी उद्यान गुजरात का सबसे पुराना प्राणीउद्यान है. यह प्राणीउद्यान गिर के विख्यात शेर के अलावा चीते और तेंदुआ के लिए प्रसिद्ध है. गिर के शेरों को लुप्तप्राय होने से बचाने के लिए जूनागढ़ के नवाब ने 1863 ईस्वी में इस प्राणीउद्यान का निर्माण करवाया था. यहां शेर के अलावा बाघ, तेंदुआ, भालू, गीदड़, जंगली गधे, सांप और चिड़िया भी देखने को मिलती है. यह प्राणीउद्यान लगभग 500 एकड़ में फैला हुआ है.

गिर राष्ट्रीय उद्यान-

वन्य प्राणियों से समृद्ध गिर राष्ट्रीय उद्यान गिरनार जंगल के करीब है. यह राष्ट्रीय उद्यान आरक्षित वन है और एशियाई शेरों के लिए एकमात्र घर है. इस वन्य अभ्यारण्य में अधिसंख्य मात्रा में पुष्प और जीव-जन्तुओं की प्रजातियां मिलती है. यहां स्तनधारियों की 30 प्रजातियां, सरीसृप वर्ग की 20 प्रजातियां और कीड़ों-मकोड़ों तथा पक्षियों की भी बहुत सी प्रजातियां पाई जाती है. यहां हिरण, सांभर, चीतल, नीलगाय, चिंकारा, बारहसिंगा, भालू और लंगूर भी देखा जा सकता है.

बौद्ध गुफा-


बौद्ध गुफा चट्टानों को काट कर बनायी गई है. इस गुफा में सुसज्जित खंभे, गुफा का अलंकृत प्रवेशद्वार, पानी के संग्रह के लिए बनाए गए जल कुंड, चैत्य हॉल, वैरागियों का प्रार्थना कक्ष, चैत्य खिड़कियां स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण पेश करती हैं. शहर में स्थित खापरा-कोडिया की गुफाएं भी देखने लायक है.

अड़ी-काड़ी वेव और नवघन कुआं-

नवघन कुआं और अड़ी-काड़ी वेव का निर्माण चूडासमा राजपूतों ने कराया था. इन कुओं की संरचना आम कुओं से बिल्कुल अलग तरह की है. पानी के संग्रह के लिए इसकी अलग तरह की संरचना की गई थी. ये दोनों कुएं युद्ध के समय दो सालों तक पानी की कमी को पूरा कर सकते थे. अड़ी-कड़ी तक पहुंचने के लिए 120 पायदान नीचे उतरना होता है, जबकि नवघन कुंआ 52 मीटर की गहराई में है.


जामा मस्जिद-



जामा मस्जिद मूलत: रानकीदेवी का निवास स्थान था. मोहम्मद बेगड़ा ने जूनागढ़ फतह के दौरान (1470 ईस्वी) अपनी विजय की याद में इसे मस्जिद में तब्दील कर दिया था . यहां अन्य आकर्षणों में नीलम तोप है जिसे तुर्की के राजा सुलेमान के आदेश पर पुर्तगालियों से लड़ने के लिए बनवाया गया था. यह तोप मिस्त्र से दीव के रास्ते आई थी.

भावनाथ मंदिर-

यहां पर हर साल दो त्योहार मनाए जाते हैं. अक्टूबर-नवंबर के महीने में पांच दिनों की अवधि के दौरान पांचवे दिन यानी पूर्णिमा के दिन कार्तिक महीने के समापन पर इस मंदिर की परिक्रमा करने के बाद झंडा लगाने के बाद आयोजित किया जाता है. गिरनार पर्वत के चारों ओर लगभग 40 किमी की परिक्रमा या परिपत्र यात्रा पांच दिनों तक चलती है. फरवरी-मार्च के दौरान माघ महीने के अमावस्या के दिन इस मंदिर में महाशिवरात्री का त्योहार मनाया जाता है.


दामोदर कुंड-








इस पवित्र कुंड के चारों ओर घाट (नहाने के लिए) का निर्माण किया गया है|मान्यता है की दर्जी संत दामोदर जी का इस कुंड से आध्यात्मिक संबंध था| ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस घाट पर भगवान श्री कृष्ण ने महान संत कवि नरसिंह मेहता को फूलों का हार पहनाया था.

जाने का सही समय:-

अक्टूबर से मार्च

कैसे पहुंचे:-

वायुमार्ग-निकटतम हवाई अड्डा राजकोट है जो भारत के प्रमुख शहरों से हवाई मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है.
रेलमार्ग-जूनागढ़ भारत में कई महत्वपूर्ण शहरों को जोड़ने वाला एक प्रमुख रेलवे स्टेशन है.
सड़कमार्ग-जूनागढ़ गुजरात के सभी स्थानों से सड़क द्वारा जुड़ा हुआ है.

दर्जी समाज के विडियो की लिंक्स-

Free Darji mass marriage programme ,Boliya M.P. (Video Part-1)

दर्जी निशुल्क समूह विवाह उत्सव बोलिया (PART 2)

निशुल्क दर्जी समूह विवाह सम्मेलन,बोलिया(पार्ट 3)

निशुल्क दर्जी समूह विवाह सम्मेलन,बोलिया,video (पार्ट 4)

Glimpses of Damodar Mahila Sangeet

Alpana and Vinod Chouhan in Damodar Mahila Sangeet

Neha and Deepesh Darji in Damodar Mahila Sangeet,Shamgarh

छाया पँवार दामोदर महिला संगीत मे

Aishwarya chouhan in Damodar Mahila SangeetArpita Rathore in Damodar Mahila Sangeet

Sunita in Damodar Mahila Sangeet

Apurva in Damodar Mahila Sangeet

दामोदर दर्जी समूह विवाह उत्सव शामगढ़ -2017, मे पाणिगृहण संस्कार

Arpita Apurva Sadhna in Damodar Mahila Sangeet

Richa Kumari in Damodar Mahila Sangeet

Inaugaration of Gyan Mandir at Gayatri Shaktipeeth Shamgarh by Dr.Aalok

Soma Parmar In Damodar Mahila Sangeet

Chaya and sisters in Damodar Mahila Sangeet

Video of Pictures from Apurva-Vineet Marriage

Free Darji mass marriage programme ,Boliya M.P. (Video Part-1)

Sadhana Jhabua in Damodar Mahila Sangeet

Darzi mass marriage ,Shamgarh -Video part 3

दामोदर दर्जी सम्मेलन मे विशिष्ट अतिथि सम्मान समारोह,शामगढ़-2017

Darji samuhik vivah sammelan Shamgarh 2014 video clip

Dr Dayaram Aalok's nav grih pravesh.AVI

Damodar Darji Samuhik Vivah Sammelan -2014 ,Shamgarh

Dileep Deshbhakt in Damodar mahila sangeet

डॉ.दयाराम आलोक का जन्म दिवस उत्सव

Soma Ranapur in Damodar Mahila Sangeet

Darji Samaj 9th Samuhik Vivah Sammelan Shamgarh -2017

Sadhana Jhabua in Damodar Mahila Sangeet

Apurva - Vineet Marriage photography video

Glimpses of Damodar Mahila Sangeet

Piyush Solanki Neemuch in Damodar mahila sangeet

Apurva -Vineet Wedding Reception susner

shiv hanuman temple shamgarh

Rajesh Yadav in Darji Sammelan Shamgarh

Gayatri Shakti Peeth Shamgarh Video

Apurva Vineet marrriage reception programme

Ritika Rathore in Damodar Mahila Sangeet

Darji Mass Marriage programme shamgarh -Video

दर्जी सामूहिक विवाह सम्मेलन ,शामगढ़ -Video clip

15.9.17

सोलंकी वंश की कुलदेवी क्षेमंकारी,क्षेमज, खीमज, खींवज माता का इतिहास





                                                 राजस्थान के भीनमाल कस्बे  की खीमज माता 

     क्षेमंकारी देवी जिसे स्थानीय भाषाओं में क्षेमज, खीमज, खींवज आदि नामों से भी पुकारा व जाना जाता है। इस देवी का प्रसिद्ध व प्राचीन मंदिर राजस्थान के भीनमाल कस्बे से लगभग तीन किलोमीटर भीनमाल खारा मार्ग पर स्थित एक डेढ़ सौ फुट ऊँची पहाड़ी की शीर्ष छोटी पर बना हुआ है। मंदिर तक पहुँचने हेतु पक्की सीढियाँ बनी हुई है। भीनमाल की इस देवी को आदि देवी के नाम से भी जाना जाता है। भीनमाल के अतिरिक्त भी इस देवी के कई स्थानों पर प्राचीन मंदिर बने है जिनमें नागौर जिले में डीडवाना से 33 किलोमीटर दूर कठौती गांव में, कोटा बूंदी रेल्वे स्टेशन के नजदीक इंद्रगढ़ में व सिरोही जालोर सीमा पर बसंतपुर नामक जगह पर जोधपुर के पास ओसियां आदि प्रसिद्ध है। सोलंकी राजपूत राजवंश इस देवी की अपनी कुलदेवी के रूप में उपासना करता है|
देवी उपासना करने वाले भक्तों को दृढविश्वास है कि खीमज माता की उपासना करने से माता जल, अग्नि, जंगली जानवरों, शत्रु, भूत-प्रेत आदि से रक्षा करती है और इन कारणों से होने वाले भय का निवारण करती है। इसी तरह के शुभ फल देने के चलते भक्तगण देवी माँ को शंभुकरी भी कहते है। दुर्गा सप्तशती के एक श्लोक अनुसार-“पन्थानाम सुपथारू रक्षेन्मार्ग श्रेमकरी” अर्थात् मार्गों की रक्षा कर पथ को सुपथ बनाने वाली देवी क्षेमकरी देवी दुर्गा का ही अवतार है।
जनश्रुतियों के अनुसार किसी समय उस क्षेत्र में उत्तमौजा नामक एक दैत्य रहता था। जो रात्री के समय बड़ा आतंक मचाता था। राहगीरों को लूटने, मारने के साथ ही वह स्थानीय निवासियों के पशुओं को मार डालता, जलाशयों में मरे हुए मवेशी डालकर पानी दूषित कर देता, पेड़ पौधों को उखाड़ फैंकता, उसके आतंक से क्षेत्रवासी आतंकित थे। उससे मुक्ति पाने हेतु क्षेत्र के निवासी ब्राह्मणों के साथ ऋषि गौतम के आश्रम में सहायता हेतु पहुंचे और उस दैत्य के आतंक से बचाने हेतु ऋषि गौतम से याचना की। ऋषि ने उनकी याचना, प्रार्थना पर सावित्री मंत्र से अग्नि प्रज्ज्वलित की, जिसमें से देवी क्षेमकरी प्रकट हुई। ऋषि गौतम की प्रार्थना पर देवी ने क्षेत्रवासियों को उस दैत्य के आतंक से मुक्ति दिलाने हेतु पहाड़ को उखाड़कर उस दैत्य उत्तमौजा के ऊपर रख दिया। कहा जाता है कि उस दैत्य को वरदान मिला हुआ था वह कि किसी अस्त्र-शस्त्र से नहीं मरेगा। अतः देवी ने उसे पहाड़ के नीचे दबा दिया। लेकिन क्षेत्रवासी इतने से संतुष्ट नहीं थे, उन्हें दैत्य की पहाड़ के नीचे से निकल आने आशंका थी, सो क्षेत्रवासियों ने देवी से प्रार्थना की कि वह उस पर्वत पर बैठ जाये जहाँ वर्तमान में देवी का मंदिर बना हुआ है तथा उस पहाड़ी के नीचे नीचे दैत्य दबा हुआ है। 



मेरा समाज मेरी कहानी


देवी की प्राचीन प्रतिमा के स्थान पर वर्तमान में जो प्रतिमा लगी है वह 1935 में स्थापित की गई है, जो चार भुजाओं से युक्त है। इन भुजाओं में अमर ज्योति, चक्र, त्रिशूल तथा खांडा धारण किया हुआ है। मंदिर के सामने व पीछे विश्राम शाला बनी हुई है। मंदिर में नगाड़े रखे होने के साथ भारी घंटा लगा है। मंदिर का प्रवेश द्वार मध्यकालीन वास्तुकला से सुसज्जित भव्य व सुन्दर दिखाई देता है। मंदिर में स्थापित देवी प्रतिमा के दार्इं और काला भैरव व गणेश जी तथा बाईं तरफ गोरा भैरूं और अम्बाजी की प्रतिमाएं स्थापित है। आसन पीठ के बीच में सूर्य भगवान विराजित है।
नागौर जिले के डीडवाना से 33 कि.मी. की दूरी पर कठौती गॉव में माता खीमज का एक मंदिर और बना है। यह मंदिर भी एक ऊँचे टीले पर निर्मित है ऐसा माना जाता है कि प्राचीन समय में यहा मंदिर था जो कालांतर में भूमिगत हो गया। वर्तमान मंदिर में माता की मूर्ति के स्तम्भ’ के रूप से मालुम चलता है कि यह मंदिर सन् 935 वर्ष पूर्व निर्मित हुआ था। मंदिर में स्तंभ उत्तकीर्ण माता की मूर्ति चतुर्भुज है। दाहिने हाथ में त्रिशूल एवं खड़ग है, तथा बायें हाथ में कमल एवं मुग्दर है, मूर्ति के पीछे पंचमुखी सर्प का छत्र है तथा त्रिशूल है।
क्षेंमकरी माता का एक मंदिर इंद्रगढ (कोटा-बूंदी ) स्टेशन से 5 मील की दूरी पर भी बना है। यहां पर माता का विशाल मेला लगता है। क्षेंमकरी माता का अन्य मंदिर बसंतपुर के पास पहाडी पर है, बसंतपुर एक प्राचीन स्थान है, जिसका विशेष ऐतिहासिक महत्व है। सिरोही, जालोर और मेवाड की सीमा पर स्थित यह कस्बा पर्वत मालाओ से आवृत्त है। इस मंदिर का निर्माण विक्रम संवत 682 में हुआ था। इस मंदिर का जीर्णोद्वार सिरोही के देवड़ा शासकों द्वारा करवाया गया था। एक मंदिर भीलवाड़ा जिला के राजसमंद में भी है। राजस्थान से बाहर गुजरात के रूपनगर में भी माता का मंदिर होने की जानकारी मिली है।


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14.9.17

मकवाना /झालावंश की कुलदेवी मरमर माता(शक्तिमाता) का इतिहास


शक्तिमाता का मंदिर दिघाड़िया ,हलवद 
झाला वंश की कुलदेवी.....
झालावंश का प्राचीन नाम मकवाना था। उनका मूल निवास कीर्तिगढ़ (क्रान्तिगढ़ ) था। हरपाल मकवाना का मूल निवास कीर्तिगढ़ था जहाँ सुमरा लोगों से लड़ाई हो जाने के बाद वह गुजरात चला गया जहां के राजा कर्ण ने उसे पाटड़ी की जागीर सोंप दी। मरमर माता को मकवानों की कुलदेवी माना जाता है कालान्तर में मकवानों को झालावंश कहा जाने लगा। अनन्तर आदमाता अथवा शक्तिमाता को झालावंशज कुलदेवी के रूप में पूजने लगे
राजकवि नाथूरामजी सुंदरजी कृत बृहद ग्रन्थ झालावंश वारिधि में हरपालदेव को पाटड़ी की जागीर मिलने के सम्बन्ध में वृत्तान्त दिया गया है कि हरपाल क्रान्तिगढ़ छोड़कर गुजरात में अन्हिलवाड़ा पाटन की ओर रवाना हुआ। मार्ग में उसकी प्रतापसिंह सोलंकी से भेंट हुई जो उसे पाटन में अपने घर लाया। जहाँ उसकी भेंट एक सुन्दर कन्या से हुई। वह कन्या शक्ति स्वरूपा थी। हरपाल ने राजा कर्ण से भेंट की। परिचय पाकर कर्ण ने उसको अपने दरबार में रख लिया। उस समय राजा कर्ण की रानी को बावरा नामक भूत ने त्रस्त कर रखा था। जब राजा कर्ण सिरोही से विवाह कर लौट रहा था तो मार्ग में पालकी में बैठी देवड़ी रानी के इत्र की शीशी ऐसे स्थान पर फूट गयी जहां बावरा भूत का निवास था। इत्र उस पर गिर गया और वह रानी के साथ पाटन आ गया। तब से वह रानी को सता रहा था। हरपाल ने रानी को उस भूत से मुक्ति दिलाने का निश्चय किया। वह महलों में गया और अपनी कुलदेवी मरमर माता की आराधना कर अपनी विधियों तथा उस चमत्कारी शक्तिरूपा कन्या की सहायता द्वारा भूत को प्रताड़ित करना शुरू किया। बावरा भूत ने हरपाल से उसे छोड़ने की प्रार्थना की और वचन दिया कि वह आगे से उसका सहायक बन कर काम करेगा। हरपाल ने बावरा को छोड़ दिया। हरपाल देवी हेतु बलिदान के लिए श्मशान गया। वहां शक्तिदेवी / मरमर माता प्रसन्न हुई और वर मांगने को कहा। हरपाल ने प्रतापसिंह की भैरवीरूपा कन्या से विवाह की इच्छा जताई। शक्तिदेवी ने उसे आशीर्वाद दिया। हरपाल ने उस कन्या से विवाह कर लिया।
उधर कर्ण ने उसकी रानी को प्रेतात्मा से मुक्ति दिलाने के बदले हरपाल को कुछ मांगने को कहा। इस पर शक्ति के कथनानुसार हरपाल ने उत्तर दिया कि एक रात में आपके राज्य के जितने गाँवों को तोरण बाँध दूँ, वे गाँव मुझे बक्षे जावें। राजा ने मंजूर कर लिया। हरपाल ने शक्तिदेवी और बावरा भूत की मदद से एक रात्रि में पाटड़ी सहित 2300 गाँवों में तोरण बाँध दिए। राजा को अपने वचन के अनुसार सभी गाँव हरपाल को देने पड़े। इससे राजा घबरा गया क्योंकि उस राज्य का अधिकाँश भाग हरपाल के पास चला गया था। राजा का यह हाल देखकर हरपाल ने भाल इलाके के 500 गांव राजा कर्ण की पत्नी को ‘कापड़ा’ के उपलक्ष्य में लौटा दिए।







13.9.17

राठौड वंश की कुल देवी माँ नागणेची जी का इतिहास


                                         

                                      नागनेची माता मंदिर नगाना धाम 
राठौड वंश की कुल देवी माँ नागणेची जी
राजस्थान के राठौड़ राजवंश की कुलदेवी चक्रेश्वरी नागणेची या नागणेचिया के नाम से प्रसिद्ध है । प्राचीन ख्यातों और इतिहास ग्रंथों के अनुसार मारवाड़ के राठौड़ राज्य के संस्थापक राव सिन्हा के पौत्र राव धूहड़ ( विक्रम संवत 1349-1366) ने सर्वप्रथम इस देवी की मूर्ति स्थापित कर मंदिर बनवाया ।
राजा राव धूहड़ दक्षिण के कोंकण (कर्नाटक) में जाकर अपनी कुलदेवी चक्रेश्वरी की मूर्ति लाये और उसे पचपदरा से करीब 7 मील पर नागाणा गाँव में स्थापित की, जिससे वह देवी नागणेची नाम से प्रसिद्ध हुई। नमक के लिए विख्यात पचपदरा बाड़मेर जोधपुर सड़क का मध्यवर्ती स्थान है जिसके पास (7 कि.मी.) नागाणा में देवी मंदिर स्थित है।
अष्टादश भुजाओं वाली नागणेची महिषमर्दिनी का स्वरुप है।  


बाज या चील उनका प्रतीक चिह्न है,जो मारवाड़ (जोधपुर),बीकानेर तथा किशनगढ़ रियासत के झंडों पर देखा जा सकता है। नागणेची देवी जोधपुर राज्य की कुलदेवी थी। चूंकि इस देवी का निवास स्थान नीम के वृक्ष के नीचे माना जाता था अतः जोधपुर में नीम के वृक्ष का आदर किया जाता था और उसकी लकड़ी का प्रयोग नहीं किया जाता था।
बीकानेर में नागणेचीजी का मंदिर शहर से लगभग 2 की.मी. दक्षिण पूर्व में अवस्थित है। देवी का यह मंदिर एक विशाल और ऊँचे चबूतरे पर बना है, जिसके भीतर अष्टादश भुजाओं वाली नागणेचीजी की चाँदी की प्रतिमा प्रतिष्ठापित है। नागणेचीजी की यह प्रतिमा बीकानेर राज्य के संस्थापक राव बीका अन्य राजचिन्हों के साथ अपने पैतृक राज्य जोधपुर से यहाँ लाये थे।
नागणेचीजी बीकानेर और  आस पास के क्षेत्र में भी सर्वत्र वंदित और पूजित हैं। नवरात्र और दशहरे के अवसर पर अपार जनसमूह देवी के दर्शनार्थ मंदिर में आते हैं।








12.9.17

चौहान वंश का इतिहास


                                

                                                                             चौहान वंश की कुलदेवी माँ आशापूरा का मंदिर  ,गेलाना,MP


चौहान वंश
चह्वान (चतुर्भुज)
अग्निवंश के सम्मेलन कर्ता ऋषि
१.वत्सम ऋषि,२.भार्गव ऋषि,३.अत्रि ऋषि,४.विश्वामित्र,५.चमन ऋषि
विभिन्न ऋषियों ने प्रकट होकर अग्नि में आहुति दी तो विभिन्न चार वंशों की उत्पत्ति हुयी जो इस इस प्रकार से है-
१.पाराशर ऋषि ने प्रकट होकर आहुति दी तो परिहार की उत्पत्ति हुयी (पाराशर गोत्र)
२.वशिष्ठ ऋषि की आहुति से परमार की उत्पत्ति हुयी (वशिष्ठ गोत्र)
३.भारद्वाज ऋषि ने आहुति दी तो सोलंकी की उत्पत्ति हुयी (भारद्वाज गोत्र)
४.वत्स ऋषि ने आहुति दी तो चतुर्भुज चौहान की उत्पत्ति हुयी (वत्स गोत्र)
चौहानों की उत्पत्ति आबू शिखर मे हुयी
दोहा-
चौहान को वंश उजागर है,जिन जन्म लियो धरि के भुज चारी,
बौद्ध मतों को विनास कियो और विप्रन को दिये वेद सुचारी॥
चौहान की कई पीढियों के बाद अजय पाल जी महाराज पैदा हुये
जिन्होने आबू पर्वत छोड कर अजमेर शहर बसाया
अजमेर मे पृथ्वी तल से १५ मील ऊंचा तारागढ किला बनाया जिसकी वर्तमान में १० मील ऊंचाई है,महाराज अजयपाल जी चक्रवर्ती सम्राट हुये.
इसी में कई वंश बाद माणिकदेवजू हुये,जिन्होने सांभर झील बनवाई थी।
सांभर बिन अलोना खाय,माटी बिके यह भेद कहाय"
इनकी बहुत पीढियों के बाद माणिकदेवजू उर्फ़ लाखनदेवजू हुये
इनके चौबीस पुत्र हुये और इन्ही नामो से २४ शाखायें चलीं
चौबीस शाखायें इस प्रकार से है-
१. मुहुकर्ण जी उजपारिया या उजपालिया चौहान पृथ्वीराज का वंश
२.लालशाह उर्फ़ लालसिंह मदरेचा चौहान जो मद्रास में बसे हैं
३. हरि सिंह जी धधेडा चौहान बुन्देलखंड और सिद्धगढ में बसे है
४. सारदूलजी सोनगरा चौहान जालोर झन्डी ईसानगर मे बसे है
५. भगतराजजी निर्वाण चौहान खंडेला से बिखराव
६. अष्टपाल जी हाडा चौहान कोटा बूंदी गद्दी सरकार से सम्मानित २१ तोपों की सलामी
७.चन्द्रपाल जी भदौरिया चौहान चन्द्रवार भदौरा गांव नौगांव जिला आगरा
८.चौहिल जी चौहिल चौहान नाडौल मारवाड बिखराव हो गया
९. शूरसेन जी देवडा चौहान सिरोही (सम्मानित)
१०.सामन्त जी साचौरा चौहान सन्चौर का राज्य टूट गया
११.मौहिल जी मौहिल चौहान मोहिल गढ का राज्य टूट गया
१२.खेवराज जी उर्फ़ अंड जी वालेगा चौहान पटल गढ का राज्य टूट गया बिखराव
१३. पोहपसेन जी पवैया चौहान पवैया गढ गुजरात
१४. मानपाल जी मोरी चौहान चान्दौर गढ की गद्दी
१५. राजकुमारजी राजकुमार चौहान बालोरघाट जिला सुल्तानपुर में
१६.जसराजजी जैनवार चौहान पटना बिहार गद्दी टूट गयी
१७.सहसमल जी वालेसा चौहान मारवाड गद्दी
१८.बच्छराजजी बच्छगोत्री चौहान अवध में गद्दी टूटगयी.
१९.चन्द्रराजजी चन्द्राणा चौहान अब यह कुल खत्म हो गया है
२०. खनगराजजी कायमखानी चौहान झुन्झुनू मे है लेकिन गद्दी टूट गयी है,मुसलमान बन गये है
२१. हर्राजजी जावला चौहान जोहरगढ की गद्दी थे लेकिन टूट गयी.
२२.धुजपाल जी गोखा चौहान गढददरेश मे जाकर रहे.
२३.किल्लनजी किशाना चौहान किशाना गोत्र के गूजर हुये जो बांदनवाडा अजमेर मे है
२४.कनकपाल जी कटैया चौहान सिद्धगढ मे गद्दी (पंजाब)
उपरोक्त प्रशाखाओं में अब करीब १२५ हैं
बाद में आनादेवजू पैदा हुये
आनादेवजू के सूरसेन जी और दत्तकदेवजू पैदा हुये
सूरसेन जी के ढोडेदेवजी हुये जो ढूढाड प्रान्त में था,यह नरमांस भक्षी भी थे.
ढोडेदेवजी के चौरंगी-—सोमेश्वरजी--—कान्हदेवजी हुये
सोम्श्वरजी को चन्द्रवंश में उत्पन्न अनंगपाल की पुत्री कमला ब्याही गयीं थीं
सोमेश्वरजी के पृथ्वीराजजी हुये
पृथ्वीराजजी के-
रेनसी कुमार जो कन्नौज की लडाई मे मारे गये
अक्षयकुमारजी जो महमूदगजनवी के साथ लडाई मे मारे गये
बलभद्र जी गजनी की लडाई में मारे गये
इन्द्रसी कुमार जो चन्गेज खां की लडाई में मारे गये
पृथ्वीराज ने अपने चाचा कान्हादेवजी का लडका गोद लिया जिसका नाम राव हम्मीरदेवजू था
हम्मीरदेवजू के-दो पुत्र हुये रावरतन जी और खानवालेसी जी
रावरतन सिंह जी ने नौ विवाह किये थे और जिनके अठारह संताने थीं,
सत्रह पुत्र मारे गये
एक पुत्र चन्द्रसेनजी रहे
चार पुत्र बांदियों के रहे
खानवालेसी जी हुये जो नेपाल चले गये और सिसौदिया चौहान कहलाये.
रावरतन देवजी के पुत्र संकट देवजी हुये
संकटदेव जी के छ: पुत्र हुये
१.धिराज जू जो रिजोर एटा में जाकर बसे इन्हे राजा रामपुर की लडकी ब्याही गयी थी
२. रणसुम्मेरदेवजी जो इटावा खास में जाकर बसे और बाद में प्रतापनेर में बसे
३. प्रतापरुद्रजी जो मैनपुरी में बसे
४. चन्द्रसेन जी जो चकरनकर में जाकर बसे
५. चन्द्रशेव जी जो चन्द्रकोणा आसाम में जाकर बसे इनकी आगे की संतति में सबल सिंह चौहान हुये जिन्होने महाभारत पुराण की टीका लिखी.
मैनपुरी में बसे राजा प्रतापरुद्रजी के दो पुत्र हुये
१.राजा विरसिंह जू देव जो मैनपुरी में बसे
२. धारक देवजू जो पतारा क्षेत्र मे जाकर बसे
मैनपुरी के राजा विरसिंह जू देव के चार पुत्र हुये
१. महाराजा धीरशाह जी इनसे मैनपुरी के आसपास के गांव बसे
२.राव गणेशजी जो एटा में गंज डुडवारा में जाकर बसे इनके २७ गांव पटियाली आदि हैं
३. कुंअर अशोकमल जी के गांव उझैया अशोकपुर फ़कीरपुर आदि हैं
४.पूर्णमल जी जिनके सौरिख सकरावा जसमेडी आदि गांव हैं
महाराजा धीरशाह जी के तीन पुत्र हुये
१. भाव सिंह जी जो मैनपुरी में बसे
२. भारतीचन्द जी जिनके नोनेर कांकन सकरा उमरैन दौलतपुर आदि गांव बसे
२. खानदेवजू जिनके सतनी नगलाजुला पंचवटी के गांव हैं
खानदेव जी के भाव सिंह जी हुये
भावसिंह जी के देवराज जी हुये
देवराज जी के धर्मांगद जी हुये
धर्मांगद जी के तीन पुत्र हुये
१. जगतमल जी जो मैनपुरी मे बसे
२. कीरत सिंह जी जिनकी संतति किशनी के आसपास है
३. पहाड सिंह जी जो सिमरई सहारा औरन्ध आदि गावों के आसपास हैं


दर्जी समाज के विडियो की लिंक्स-

Alpana and Vinod Chouhan in Damodar Mahila Sangeet

Neha and Deepesh Darji in Damodar Mahila Sangeet,Shamgarh

Arpita Rathore in Damodar Mahila Sangeet

Sunita in Damodar Mahila Sangeet



Apurva in Damodar Mahila Sangeet








म्हे तो रे मनावां म्हारी आशापुरा (चौहान वंश की कुलदेवी का भजन)


                                                                  Image result for ashapura temple by  dr.aalok
म्हे तो रे मनावां म्हारी आशापुरा ए माय, जगदम्बा ए माय,
सिंवरे जणों रे बेले आवजो ए मा॥
पेलो रे अवतार माजी मोडीगढ रे मांय,
जूनागढ केवीजे माता जोगणी ओ जे॥
बीजो रे अवतार माजी चोटीला रे मांय,
गाजण मां केवीजे माता जोगणी ओ जे॥
तीजो रे अवतार माता चोथर माता आप,
चोथो रे आशापुरीजी जोगणी ओ जे॥
म्हे तो रे मनावां म्हारी आशापुरा हे मां,
सिंवरे जणांरे बेले आवजो हे मां॥
थांने तो मनावे माता नवकोटी मारवाड,
थांने रे मनावे मीठो माळवो ओ जे॥
थांने तो मनावे माता सोनगरा जालोर,
थांने तो मनावे सिरोही रा देवडा ओ जे॥
थाने तो मनावे माता नाडोले रा लोग,
थांने तो मनावे बोमण वांणीया ओ जे॥
लाखणजी आया रे ए तो चोथर मां रे द्वार,
सोना रे हिन्डोळे माजी हिंचता ओ जे॥
लळे रे लळे ने लाखण करे नमस्कार,
शरणो मे राखोनी माता जोगणी ओ जे॥
अन रे धन रा माता भरीया रे भंडार,
पेट नी आयो रे माता दिकरो ओ जे॥
माजी रे केवे रे देखो लाखणजी ने वात,
एक रे सन्देशो लाखण सांभळो ओ जे॥
थे रो रे जाजो रे लाखण नाडोले रे मांय,
आशा तो पुरावे आशापुरी जोगणी ओ जे॥
म्हे तो रे मनावां म्हारी आशापुरा हे मां,
सिंवरे जणांरे बेले आवजो हे मां॥
थांने तो मनावे माता नवकोटी मारवाड,
थांने रे मनावे मीठो माळवो ओ जे॥
थांने तो मनावे माता सोनगरा जालोर,
थांने तो मनावे सिरोही रा देवडा ओ जे॥






1.9.17

दामोदर क्षत्रीय स्व॰नादरजी सोलंकी दर्जी बोलिया की वंशावली


*इस वंशावली के निर्माण मे विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी उपयोग मे लाई गई है फिर भी  वंशावली त्रुटिविहीन हो ,ऐसा प्रयास किया गया है|
*आपके रचनात्मक सहयोग से इसे और सटीक बनाया जा सकता है|
*जन्म और मृत्यु दिनांक मे कुछ गलत हो तो सूचित करें| 
*पीढ़ी बताने वाले अंक नाम के पहिले यानि शुरू मे लिखे गए हैं|
*जीवित और मृत  दर्जी बंधुओं के फोटो उपलब्ध कराने पर लगाए जाएँगे|
 - निवेदक-डॉ॰दयाराम आलोक 
                                   
                                  सोलंकी वंश की कुलदेवी माँ क्षेमंकरी(खीमज माता)  भीनमाल मे                   

1. नादरजी सोलंकी दर्जी बोलिया
└ +Unknown
└ +भंवर लाल जी राठौर दरजी संधारा b. 1908; d. 1981
4. भवानी शंकर जी राठौर दरजी संधारा b. February 7, 1934
└ +मैना बाई - भवानी शंकर जी राठौर दरजी संधारा b. June 4, 1935, दरजी मोहल्ला, रामपुरा, नीमच , Madhya Pradesh; d. 2011
2. पार्वती बाई पिता भँवर लाल जी राठौर संधारा b. 1940
2. सजन बाई -कन्हैया लाल जी सिसोदिया दर्जि मेल खेडा b. 1926, sandhara, mandsaur , मध्य प्रदेश; d. September 11, 2004
└ +कन्हैया लाल जी सिसौदिया दर्जी मेल खेडा b. 1919; d. July 29, 1999
3. शामू बाई --रामचंद्र पंवार दर्जी भवानीमंडी b. 1954, mrlkheda, मंदसौर , मध्य प्रदेश
2. नारायणी बाई -सीताराम जी मकवाना रामपुरा
└ +सीताराम जी मकवाना दर्जी रामपुरा b. 1906, रामपुरा, मध्य प्रदेश; d. 1978
3. बापू लाल जी मकवाना दर्जी रामपुरा b. 1916, रामपुरा, नीमुच , मध्य प्रदेश; d. 1993
└ +लीला बाई पिता मोतीलाल जी दर्जी रामपुरा b. 1919, rampura, madhya pradesh, bharat; d. 1990
3. भैया लाल मकवाना दर्जी रतनगढ़ / रामपुरा वाला b. 1922; d. 2001
└ +लीला बाई -भैयालाल जी मकवाना रत्न गढ़ /रामपुरा से b. 1925; d. 1996
3. गोरधन लाल मकवाना दर्जी रतन गढ़ b. 1931; d. 1997
└ +गीताबाई--गोरधन जी सीतारामजी मकवाना दरजी रतनगढ b. 1934

5. चंदर बाई -दीनबंधु परमार रींछड़िया b. 1960
L+दीनबंधु परमार दर्जी रींछडिया b. 1959
6. कन्हैयालाल परमार दर्जी इन्दौर b. 1978
6. अनिल परमार दर्जी इन्दौर b. 1981

3. देवीलाल सोलंकी दर्जी बोलिया b. 1937
└ +मोहन बाई-देवी लाल सोलंकी दर्जी बोलिया b. 1939; d. 2011
4. राजेंद्र राठौर दर्जी बोलिया
2. प्यारेलाल जी सोलंकी दर्जी बोलिया
└ +भूली बाई पिता ----- दर्जी बाबुल्दा
3. भंवरी बाई पिता प्यारजी सोलंकी दर्जी बोलिया b. 1897
└ +लक्ष्मण जी राठौर दरजी बनजारी b. 1895, banjari, chandwasa, mandsaur, madhya pradesh; d. 1963
4. शंकरलाल जी राठौर दर्जी बोलिया b. June 8, 1917, boliya, garoth, mandsaur, bharat; d. circa 1988
└ +सरतान बाई पिता पूरालाल जी सोलंकी दरजी कोली खेडा b. 1920; d. 2008, boliya, garoth, mandsaur, madhya pradesh
5. रामचंद्र जी राठौर दरजी बोलिया b. May 21, 1942
└ +कमला बाई - राम चंद्र जी राठौर दर्जी बोलिया
2. दरयावबाई पूराजी दर्जी बोरदा


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डॉ.दयाराम आलोक : साहित्य सृजन एवं दर्जी समाज उन्नायक अनुष्ठान