1.9.17

दर्जी जाति का इतिहास,History of darji caste






   दर्जी जाति का इतिहास उतना ही पुराना है जितना की मानव का इतिहास। यूँ तो मनुष्य आरम्भ में नग्न अवस्था में रहता था और पशुओं के शिकार पर ही आश्रित था कालांतर में मनुष्य ने कृषि, आग, पत्थर के औजार आदि की खोज की इसी विकास क्रम में मनुष्य ने शीत से बचने के लिए चमड़े का उपयोग किया यह वही समय था जब कोई जाति नही थी या सब जाति के गुण एक ही मानव में थे। जैसे जैसे मनुष्य किसी कार्य में दक्ष होता गया वेसे वेसे वही कार्य मनुष्य का पेशा बन गया। यूँ कहे की विकास क्रम में मानव ने विनिमय आरंभ कर दिया था और धीरे धीरे व्यापार मुद्रा का आरंभ हुआ और मनुष्य की मूलभूत आवश्यकता ही व्यापार का आधार बनी जिसमे किसान, व्यापारी, औजार बनाने वाले और वस्त्र बनाने वाले आदि।
विश्व इतिहास में यह माना गया है कि कपास का सर्वप्रथम उपयोग भारत में ही हुआ था अतः यह कहना सार्थक होगा की धागा बनाना और कपड़ा बनाना भी भारत में ही आरम्भ हुआ यही कला चीनियों ने भारत से सीखी किंतु वे इस कला को और अधिक विकसित कर सके और रेशम की खोज की। यह एक क्रांतिकारी खोज थी अब मनुष्य सौंदर्य के साथ ही परिधान पर भी ध्यान देना आरंभ किया।  
यह पेशा उस प्रकार से हो गया जैसे आज कोई वैज्ञानिक हो।
 जाति इतिहास लेखक डॉ ,दयाराम  आलोक के मतानुसार  2500 ईसा पूर्व से ही मनुष्य प्रजाति का एक तबका वस्त्र निर्माण और उसकी  डिजाइन बनाने के कार्य में लग गया कालांतर में भारत में वैदिक और उत्तर वैदिक काल में जाति व्यवस्था प्रकाश में आई और दर्जी जाति भी इसी काल में आई। जाति व्यवस्था प्रचलित होने पर कपड़े से सम्बंधित कार्य करने वालो को दर्जी कहा गया लेकिन यह जाति बिना पहचान के ही सेकड़ो वर्षो पूर्व से ही कार्य में लगी हुई है।
अब यह जाति अपने द्वारा सीखी गयी कलाकारी को अपनी सन्तानो को भी देने लगे और अगली पीढ़ी भी उन्नत कलाकारी कर पाई जिसमे कपड़ा निर्माण, छपाई, रँगाई, वस्त्र निर्माण आदि कार्य शामिल है और इसी कार्य से सम्बंधित लोगो में वैवाहिक सम्बन्ध होने लगे। यह जाति एक विकसित जाति रही जिसके प्रमाण इसी बात से लगाया जा सकता है कि राजा और सम्पन्न लोग अपने पर्सनल दर्जी रखते थे और यही प्रथा आधुनिक काल में अंग्रेजो ने भी रखी उन्होंने दर्जी जाति को भारत में टेलर नाम दिया।आज भी दर्जी जाति के लोग इस कार्य को बखूबी कर रहे है | 

दामोदर वंशी दर्जी समुदाय की जानकारी 

दामोदर वंशी दर्जी समाज एक पारंपरिक भारतीय समुदाय है जो मुख्य रूप से मध्य प्रदेश और राजस्थान में पाया जाता है। यह समुदाय अपनी विशिष्ट संस्कृति, परंपराओं और व्यवसाय के लिए जाना जाता है। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं जो दामोदर वंशी दर्जी समाज के बारे में बताती हैं:
1. उत्पत्ति: दामोदर वंशी दर्जी समाज की उत्पत्ति गुजरात से हुई है, जहाँ से वे मुस्लिम शासकों के अत्याचारों और जबरन इस्लामीकरण के दबाव के कारण पलायन कर मध्य प्रदेश और राजस्थान में बस गए।
2. व्यवसाय: दामोदर वंशी दर्जी समाज का मुख्य व्यवसाय दर्जी का काम है, जिसमें वे कपड़े सिलते और बनाते हैं।
3. संस्कृति: दामोदर वंशी दर्जी समाज की संस्कृति में हिंदू परंपराएं और रीति-रिवाज शामिल हैं, जिनमें वे अपने पूर्वजों की पूजा करते हैं और त्योहारों को मनाते हैं।
4. भाषा: दामोदर वंशी दर्जी समाज की मुख्य भाषा हिंदी और गुजराती है, लेकिन वे स्थानीय भाषाओं जैसे कि मध्य प्रदेशी और राजस्थानी भी बोलते हैं।
यह जानकारी दामोदर वंशी दर्जी समाज के बारे में एक सामान्य विचार देती है, लेकिन अधिक विस्तृत जानकारी के लिए और शोध की आवश्यकता हो सकती है
 जूनागढ़ के मुस्लिम शासकों के अत्याचारों और जबरन इस्लामीकरण की वजह से दामोदर वंशीय दर्जी समाज के दो जत्थे गुजरात को छोड़कर मध्य प्रदेश और राजस्थान में विस्थापित हुए।
पहला जत्था 1505 ईस्वी में महमूद बेगड़ा के शासनकाल में विस्थापित हुआ, और दूसरा जत्था 1610 ईस्वी में नवाब मिर्जा जस्साजी खान बाबी के शासनकाल में विस्थापित हुआ।
इन दोनों जत्थों के लोगों की बोली और संस्कृति में अंतर होने के कारण, पहले जत्थे के लोग "जूना गुजराती" और दूसरे जत्थे के लोग "नए गुजराती" कहलाने लगे।
  दामोदर वंशी दर्जी समाज के परिवारों की गौत्र क्षत्रियों की है, जिससे यह ज्ञात होता है कि इनके पुरखे क्षत्रिय थे। और जूना गुजराती समाज के लोग "सेठ" उपनाम का उपयोग करते हैँ 
उल्लेख योग्य है कि वैश्विक स्तर पर दर्जी सामाज की सबसे बड़ी और सबसे अधिक पाठकों वाली website का Address
https://damodarjagat.blogspot.com
जिसकी पाठ संख्या करीब पाँच लाख है
  दामोदर वंशी नये गुजराती दर्जी समाज के पुरोधा डॉ दयाराम आलोक के सामाजिक, धार्मिक, आध्यात्मिक अनुष्ठानों का इतिवृत्त  समझने और निहितार्थ को आत्मसात  करना दर्जी समाज के अभ्युत्थान का प्रेरक तत्व हो सकता  है.
डॉ. दयाराम आलोक ने दर्जी समाज के उत्थान और विकास के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने समाज को संगठित करने और उसकी गतिविधियों को सही दिशा देने के लिए अखिल भारतीय दामोदर दर्जी महासंघ का गठन किया, जो एक महत्वपूर्ण कदम था। इस संस्था का  प्रधान कार्यालय 14,जवाहर मार्ग शामगढ़ है । 
इसके अलावा, उन्होंने समाज की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए सामूहिक विवाह की परंपरा शुरू की, जिसमें 9 सामूहिक विवाह आयोजित किए गए। 2010 में उन्होंने स्ववित्त पोषित निशुल्क सामूहिक विवाह का आयोजन किया, जो एक बहुत ही सराहनीय कदम था।
   सन्त नामदेव जो दर्जी जाति से थे उन्होंने भक्ति की पराकाष्ठा को पार कर ईश्वर को भोज कराया ततपश्चात नामदेव दर्जी जाति व अन्य जातियों के सन्त बन गए और मुख्य रूप से दर्जी जाति के लोगो ने तो नाम के साथ नामदेव लगाना भी आरंभ कर दिया वर्तमान में नामदेव समाज प्रकाश में आया जो कि  आधुनिक महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में विकसित हुआ।पीपा वंशीय दर्जी समाज क्षत्रीय गोत्र वाला सबसे अधिक संख्या वाला दर्जी  समाज है जो पीपा जी महाराज के अनुयायी हैं। महाराष्ट्र और गुजरात मे देसाई दर्जी समाज है जिनके साथ क्षत्रीय गोत्र का प्रचलन है। 
इस जाति और समाज ने कलात्मक और आर्थिक रूप से राष्ट्र विकास में अहम भूमिका अदा की और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कला से जुड़ाव होने के कारण यह समाज किसी भी आपराधिक गतिविधियों से अछूता ही रहा, सरकारी नोतियो के कुछ नकारात्मक प्रभाव होने पर भी कभी विरोध के स्वर इस जाति में सुनाई नही पड़े। आज इस समाज ने यथा मानववाद को चरितार्थ किया
   बिहार के मुस्लिम दर्जी भाई श्री रहमानजी भाति राजपूत जो अंजुमन इस्लामिया इदरिस संगठन के सचिव हैं ,दर्जी कम्यूनिटी के लिए बहुत आच्छा काम  कर रहे हैं उन्होंने मुझे एक डाक्यमेन्ट भेजा  है आप भी अवलोकन करें- 


3 टिप्‍पणियां:

मुकेश कुमार ने कहा…

दर्जी समाज एकता संगठन जिंदाबाद जिंदाबाद

मुकेश कुमार ने कहा…

दर्जी समाज युवा संगठन जिन्दाबाद
साहब इस समाज के सहयोग में हम आपका बहुत बहुत आभार व्यक्त करते हैं ।
धन्यवाद
दर्जी समाज सेवक
मुकेश कुमार

Unknown ने कहा…

Good knowledge suraj bhan osa Manjhanpur Kaushambi Uttar Pradesh