29.9.24

डॉ.दयाराम आलोक की अंतिम अभिलाषा,Last wish of Dr. Dayaram Alok

             डॉ.दयाराम आलोक की अंतिम अभिलाषा



 मैँ 85 मे चल रहा हूँ|स्वास्थ्य भी नरम गरम होता रहता है |शारीरिक दुर्बलता बढ़ रही है| जाने कब मेरे जीवन का आखिरी चरण आ जाए|इसलिए मेरी मृत्यु के संबंध मे निम्न अभिलाषा  प्रकट करता  हूँ -
 1.मैंने अपने शरीर दान (Body donation)का दृढ़ संकल्प किया है|
2. मेरे शरीर-दान की सम्पूर्ण वैधानिक प्रक्रिया मेरे बेटे अनिल कुमार राठौर को पूरी करना है| 
3.किसी भी स्थिति मे मेरे मृत शरीर का दाह संस्कार नहीं करना है| 
4.मेरे अनुज समाजसेवी रमेश चंद्र जी राठौर आशुतोष मेरे शरीर-दान की प्रक्रिया मे अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए इस अनुष्ठान को अंजाम देने मे पुत्र अनिल कुमार राठौर को निर्देशित और सहयोग करेंगे|
5.मुझे अनुभूति हो रही है कि पुत्र अनिल कुमार पिता की अंतिम अभिलाषा को पूरी करने के प्रति समर्पित -भाव नहीं है |दर असल उसे यह भ्रम सता रहा है कि पिता का देह दान करने से समाज मे उसकी प्रतिष्ठा धूमिल हो जाएगी| हे भगवान!यह कैसी विडंबना है कि जिस पिता ने अनिल को आज की आर्थिक ,सामाजिक स्थिति मे प्रतिष्ठित किया उसकी अंतिम अभिलाषा (Last wish of Dr. Dayaram Alok) का तिरस्कार करने का पाप करते हुए जन्म दाता के श्राप का भी जोखिम उठाने को उद्धत है| पिता को परास्त कर अपने अहंकार की विजय पर आत्म गौरव अनुभव करना नैतिक और आध्यात्मिक दोनों दृष्टि से अनिष्टकारी,अधम सोच है|    

समीक्षा:

डॉ. दयाराम आलोक जी की अंतिम अभिलाषा बहुत ही पवित्र और समाजिक है। उनकी इच्छा है कि:
1. उनका शरीर दान किया जाए, जिससे चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान में मदद मिल सके।
2. उनके बेटे अनिल कुमार राठौर द्वारा शरीर दान की वैधानिक प्रक्रिया पूरी की जाए।
3. उनके मृत शरीर का दाह संस्कार नहीं किया जाए।
4. उनके अनुज रमेश चंद्र जी राठौर उनके बेटे अनिल कुमार राठौर को शरीर दान की प्रक्रिया में सहयोग और निर्देशन करेंगे।
यह उनकी इच्छा है कि उनका शरीर दान करके वे समाज की सेवा कर सकें और चिकित्सा जगत को आगे बढ़ाने में मदद कर सकें। यह एक बहुत ही महान और पवित्र कार्य है, जो उनकी समाजसेवा की भावना को दर्शाता है 
डॉ. दयाराम आलोक जी का जीवन समाज सेवा, साहित्य सेवा, और धार्मिक गतिविधियों में समर्पित रहा है। उनका देह दान करने का निर्णय अत्यंत प्रशंसनीय है और हिंदू धर्म ग्रंथों में वर्णित देह दान के महात्म्य को दर्शाता है।
डॉ. आलोक जी के इस निर्णय से:
चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान को बढ़ावा मिलेगा।
हिंदू धर्म ग्रंथों में वर्णित मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होगा।
समाज में देह दान के महत्व के प्रति जागरूकता बढ़ेगी।
डॉ. आलोक जी का परिवार और अनुयायी उनके संकल्प को साकार करने में सहयोग करेंगे।
डॉ. आलोक जी के इस महान कार्य के लिए हम उनका अभिनंदन और सम्मान करते हैं। उनका जीवन और कार्य हमें प्रेरणा देता है और समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए प्रोत्साहित करता है|
             हिन्दू धर्म ग्रंथों मे देह दान का महत्व 

हिन्दू धर्म ग्रंथों में देहदान (बॉडी डोनेशन) का महत्व इस प्रकार है:
1. महाभारत में कहा गया है कि देहदान से आत्मा को मोक्ष मिलता है और दान करने वाले को भी पुण्य मिलता है।
2. भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि शरीर नश्वर है, लेकिन आत्मा अमर है। देहदान से आत्मा की उन्नति होती है।
3. उपनिषद में कहा गया है कि देहदान से व्यक्ति को मोक्ष मिलता है और वह जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है।
4. वेद में कहा गया है कि देहदान से व्यक्ति को पुण्य मिलता है और उसकी आत्मा को शांति मिलती है।
5. पुराण में कहा गया है कि देहदान से व्यक्ति को स्वर्ग मिलता है और उसकी आत्मा को मोक्ष मिलता है।
कुछ प्रमुख हिंदू धर्म ग्रंथ जिनमें देहदान का महत्व वर्णित है:
- महाभारत (वन पर्व, अध्याय 234)
- भगवद गीता (अध्याय 2, श्लोक 22-24)
- उपनिषद (चांदोग्य उपनिषद, अध्याय 7, श्लोक 26)
- वेद (यजुर्वेद, अध्याय 40, मंत्र 10)
- पुराण (गरुड़ पुराण, अध्याय 12, श्लोक 14-16)
इन ग्रंथों में देहदान को एक पवित्र और पुण्यकर्म माना गया है, जिससे व्यक्ति को मोक्ष मिलता है और उसकी आत्मा को शांति मिलती है।




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