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6.7.25

एक महान योद्धा, शासक और संत पीपाजी महाराज की अमर कहानी


मित्रों , हिन्दू समाज में जाति व्यवस्था  वैदिक काल से ही  प्रचलित है|  आज के विडियो में दर्जी समुदाय के महान संत भगत पीपाजी का जीवन परिचय   प्रस्तुत कर रहे हैं |
   एक योद्धा वर्ग और शाही परिवार में जन्मे, पीपा को एक प्रारंभिक शैव (शिव) और शाक्त (दुर्गा) अनुयायी के रूप में वर्णित किया गया है। इसके बाद, उन्होंने रामानंद के शिष्य के रूप में वैष्णववाद को अपनाया , और बाद में जीवन के निर्गुणी (गुणों के बिना भगवान) विश्वासों का प्रचार किया |भगत पीपा को 15वीं शताब्दी के उत्तरी भारत में भक्ति आंदोलन के शुरुआती प्रभावशाली संतों में से एक माना जाता है।
संत पीपाजी (बचपन का नाम प्रताप सिंह) का जन्म में 1425 ईसवी में चैत्र पूर्णिमा के दिन गागरोन दुर्ग( झालावाड़) की राजा की खींची चौहान वंश में पिता कड़वाराव तथा माता लक्ष्मीवत्ती के यहां हुआ|

प्रताप सिंह बनारस जाकर रामानंद जी के शिष्य बने तब रामानंद जी ने उन्हें कहा कि तू लोकहितार्थ  प्रेम रस पी और दूसरों को भी पिला  तभी से प्रताप सिंह संत पीपाजी कहलाने लगे।

संत पीपा जी ने गौ रक्षा हेतु फिरोज़ शाह तुगलक की सेना से भी युद्ध किया।

ईश्वर भक्ति को मोक्ष प्राप्ति का मार्ग मानते हुए वैष्णो धर्म का प्रचार किया इसी कारण वे राजस्थान में भक्ति आंदोलन के प्रथम संत कहलाते हैं।

संत पीपा जी को दर्जी समुदाय के लोग अपना आराध्य देवता मानते हैं ।संत पीपा जी का मंदिर समदड़ी ग्राम (बाड़मेर) में है जहा पिपा पंथी दर्जी समुदाय का प्रति वर्ष चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को विशाल मेला आयोजित किया जाता है पिपाजी ने अपना अंतिम समय टोक जिले के टोडा ग्राम में स्थित एक गुफा में भजन करते हुए व्यतीत किया जहां पर चैत्र कृष्ण नवमी को देवलोक( मृत्यु )को प्राप्त हुए वह गुफा आज संत पीपा की गुफा (तहसील- टोडारायसिंह जिला- टोंक) के नाम से जानी जाती है संत पीपा जी की छतरी कालीसिंध नदी के किनारे गागरोन दुर्ग झालावाड़ में स्थित है ,जहां उनके चरण पूजा होती है

पीपाजी का जीवन परिचय विडिओ -


पीपाजी, जिन्हें पीपा बैरागी के नाम से भी जाना जाता है, 14वीं-15वीं शताब्दी के एक प्रसिद्ध संत और कवि थे। वे गागरोन (झालावाड़, राजस्थान) के एक क्षत्रिय राजा थे, जिन्होंने बाद में भक्ति आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका मूल नाम प्रताप सिंह था।

पीपाजी का जीवन परिचय:
जन्म और परिवार:
पीपाजी का जन्म गागरोन में 14वीं शताब्दी के अंत में (विक्रम संवत 1380, 1323 ईस्वी) में हुआ था।
उल्लेखनीय है कि भक्ति युग  के इसी काल मे दामोदर वंशी  दर्जी समाज के महान  संत दामोदर जी महाराज का जन्म 1367 ईस्वी मे प्राचीन नगर जूनागढ़ मे  हुआ था| 




 पीपाजी  खींची चौहान वंश के राजा थे।




राजसी जीवन:
वे गागरोन के शासक थे और उन्होंने फिरोजशाह तुगलक जैसे शासकों को युद्ध में पराजित किया था।

उनकी तीन पत्नियां थीं। पटरानी (पहली पत्नी) का नाम सीता था।


भक्ति की ओर झुकाव:
युवावस्था से ही पीपाजी का झुकाव आध्यात्म की ओर था। उन्होंने रामानंद से दीक्षा ली और भक्ति मार्ग अपनाया।

संत जीवन:
राजपाट त्यागने के बाद, पीपाजी ने रामानंद के शिष्य के रूप में भक्ति और समाज सुधार का मार्ग अपनाया।

साहित्यिक योगदान:
पीपाजी ने कई भजन, साखियां और दोहे लिखे हैं, जो आज भी प्रसिद्ध हैं।
                                   संत पीपाजी की गुफा 


मृत्यु:
पीपाजी ने अपना अंतिम समय टोडा (टोंक, राजस्थान) में एक गुफा में बिताया, जहाँ 1473 ईस्वी में उनकी मृत्यु हो गई।

                  पीपाजी की छतरी काली सिंध के तट पर 


छतरी:
पीपाजी की छतरी गागरोन किले के पास कालीसिंध नदी के किनारे स्थित है।

                      समदड़ी (बाड़मेर) मे पीपा जी का मंदिर 


सामाजिक महत्व:
पीपाजी को दर्जी समुदाय के लोग अपना आराध्य मानते हैं और उनका मंदिर समदड़ी (बाड़मेर) में स्थित है।
पीपाजी एक महान योद्धा, शासक और संत थे, जिन्होंने भक्ति आंदोलन को राजस्थान में लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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