परमार ( पंवार ) क्षत्रियो की कुलदेवी
सच्चियाय ( सच्चिवाय ) माता का भव्य मंदिर जोधपुर से लगभग ६० कि. मी. की दूरी पर ओसियॉ में स्थित है इसी लिये इनको ओसियॉ माता भी कहा जाता है , ओसियॉ पुरातत्विक महत्व का एक प्राचीन नगर है , ओसियॉ शहर कला का एक महत्वपूर्ण केन्द्र होने के साथ ही धार्मिक महत्व का क्षेत्र रहा है यहॉ पर ८ वीं १२ वीं शताब्दी के कालात्मक मंदिर ( ब्रह्मण एवं जैन ) और उत्कष्ट मूर्तियॉ विराजमान है , परमार क्षत्रियो के अलावा यह ओसवालो की भी कुलदेवी है , स्थानीय मान्यता के अनुसार इस नगरी का नाम पहले मेलपुरपट्टन था , बाद में यह उकेस के नाम से जाना गया फिर बाद में यह शब्द अपभ्रंश होकर ओसियॉ हो गया , एक ढुण्ढिमल साधू के श्राप दिये जाने पर यह गॉव उजड गया था , उप्पलदेव परमार राजकुमार के द्वारा यह नगर पुन: बसाया गया था , उसने यहा ओसला लिया था अथवा शरण ली थी , इसी के कारण इस नगर का नाम ओसियॉ नाम पड गया था , लेखको के आधार पर भीनमाल के परमार राजकुमार के द्वारा ओसियॉ नगर बसाने का उल्लेखनीय मिलता है ।।
भीनमाल में राजा भीमसेन पंवार राज्य करते थे उनके दो पुत्र हुये बडा उपलदा और छोटा सुरसुदरू राजा भीमसेन ने अपने छोटे पुत्र को उत्तराधिकारी घोषित कर बडे पुत्र उपलदे को देश निकाला दे दिया था , तब राजकुमार उपलदे ने इसी जगह ओसियॉ में शरण ली थी जो ये जगह उजडी हुई पडी थी , वहा पर एक माता जी का स्थान था जहा पर माँ के चरण चिन्ह के निशान एक चबूतरे पर स्थित थे , उसने आकर माँ को प्रणाम किया और रात्रि होने पर वहा सो गया , तब श्री चामुण्डा देवी जी ने प्रगट होकर पूछा कि तू कौन है , इस पर उपलदे ने कहा कि में पंवार राजपूत हू यहा पर नगर बसाना चाहता हूँ , तब देवी जी ने कहा कि सूर्य उदय होने पर जितनी दूर तक तुम अपना घोडा घुमाओगे शाम तक उस जगह मकान बन जायेंगे दिन उगने पर उसने अपना घोडा ४८ कोस तक घुमाया और घर बसने लगे मगर रात्री मे सभी घर फिर ध्वस्त होने लगे , तब राजकुमार ने देवी से कहा कि माँ ये क्या हो रहा है माँ ने कहा कि तू पहले मेरा मंदिर बना तब तेरा शहर निर्माण करना राजकुमार बोला माँ मेरे पास तो कुछ भी नही है में तेरा मंदिर कैसे निर्माण करवाऊ माँ ने तभी गढा हुआ धन पानी सभी सामग्री बताई , मंदिर का निर्माण होने पर उपलदे ने देवी से पूछा कि मूर्ति सोना चॉदी ,या पत्थर की कराऊ तब देवी जी ने कहा कि तुम शांत रहना में स्वयं पृथ्वी से प्रगट होऊँगी , माता जब तीसरे दिन धरती से पृगट हुई तब आकाश में से जोर से गर्जना हुई मानो भूकम्प आ गया हो , देवी ने राजकुमार से कहा था कि तुम चिल्लाना मत मगर राजकुमार डर की बजह से चिल्लाना लगा तब माता धरती में से आधी निकली और आधी जमीन के अंदर ही रह गयी इस पर माता राजकुमार पर कुपित हुई मगर माँ तो माँ होती है माता ने उसको मॉफ कर दिया , और मंदिर के सामनेमहल बनाकर रहने को कहा , राजकुमार बोला कि माँ मकान तो बन गये अब बस्ती कहा से लाऊँ तब माता ने कहा कि भीनमाल जाकर अपने भाई से बस्ती की मॉग कर तभी उपलदे ने अपने भाई से बस्ती देने को कहा तो उसने मना कर दिया दौनो भाइयो में युद्द होने लगा मगर माँ की कृपा से उपलदे का बालबाका भी नही हुआ उसने अपने भाई को पकड लिया , और उसी समय उसने भीनमाल का आधा पट्टा अपने कब्जे में कर लिया ,इसी प्रकार भीनमाल ने ओसियॉ नगर की स्थापना की जिसको ओसियॉ माता या सच्चियाय माता के नाम से माता का मंदिर जाना जाता है ।।
मेरा समाज मेरी कहानी
ओसियॉ के पहाडी पर अवस्थित मंदिर परिसर में सर्वाधिक लोकप्रिय और प्रसिद्द सच्चियाय माता का मंदिर १२ वीं शताब्दी के आसपास बना यह भव्य और विशाल मंदिर महिषमर्दिनी ( दुर्गा) को समर्पित है , उपलब्ध साक्ष्यो से पता चलता है कि उस युग में जैन धर्मावलम्बी भी देवी चण्डिका अथवा महिषमर्दिनी की पूजा - अर्चना करने लगे थे, तथा उन्होने उसे प्रतिरक्षक देवी के रूप में स्वीकार किया था , परंतु उन्होने देवी के उग्र रूप या हिंसक के बजाय उसके ललित एवं शांत स्वरूप की पूजा अर्चना की , अत: उन्होने माँ चामुण्डा देवी के वजाय सच्चियाय माता ( सच्चिका माता ) नाम दिया था , सच्चियाय माता श्वेताम्बर जैन सम्प्रदाय के ओसवाल समाज के साथ परमारों ( पंवारो ) सांखला , सोढा राजपूतो की ईष्टदेवी या कुलदेवी है , सच्चियाय माता के मंदिर के गर्भ गृह के बाहर की एक अभिलेख उत्तकीर्ण है जिसमें १२३४ ( ११७८ ई. ) का लेख जिसमें सच्चियाय माता मंदिर में चण्डिका , शीतला माता , सच्चियाय , क्षेमकरी , आदि देवियो और क्षेत्रपाल की प्रतिमाएँ प्रतिष्ठापित किये जाने का उल्लेख हुआ है , ।।
परमार वंश की कुलदेवी और गौत्र-प्रवरादि
वंश - अग्निवंश
कुल - परमार
गोत्र- वशिष्ठ
प्रवर - तीन , वशिष्ठ , अत्रि , साकृति
वेद - यजुर्वेद
उपवेद - धनुर्वेद
शाखा - वाजसनयि
प्रथम राजधानी - उज्जैन ( मालवा )
कुलदेवी - सच्चियाय माता
ईष्टदेव - माण्डवराव (सूर्य )
महादेव - रणजूर महादेव
गायत्री- ब्रह्मगायत्री
भैरव - गोरा - भैरव
तलवार- रणतरे
ढाल - हरियण
निशान- केसरी सिंह
ध्वज - पीला रंग
गढ - आबू
शस्त्र- भालो
गाय- कवली गाय
वृक्ष- कदम्ब , पीपल
नदी - सफरा ( शिप्रा)
पक्षी - मयूर
पाधडी - पचरंगी
राजयोगी - भर्तृहरि
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