वंश – सूर्य वंश
गोत्र – मार्कण्डेय
शाखा – मध्यनी
कुल – मकवान(मकवाणा)
पर्व तीन – अश्व, धमल, नील
कुलदेवी – दुर्गा,मरमरा देवी,शक्तिमाता
इष्टदेव – छत्रभुज महादेव
भेरव – केवडीया
कुलगोर – मशीलीया राव
शाखाए – झाला,राणा
दर्जी समाज के विडियो की लिंक्स-
Alpana and Vinod Chouhan in Damodar Mahila Sangeet
Neha and Deepesh Darji in Damodar Mahila Sangeet,Shamgarh
Arpita Rathore in Damodar Mahila Sangeet
Sunita in Damodar Mahila Sangeet
Neha and Deepesh Darji in Damodar Mahila Sangeet,Shamgarh
Arpita Rathore in Damodar Mahila Sangeet
Sunita in Damodar Mahila Sangeet
झाला वंश की कुलदेवी.....
झालावंश का प्राचीन नाम मकवाना था। उनका मूल निवास कीर्तिगढ़ (क्रान्तिगढ़ ) था। हरपाल मकवाना का मूल निवास कीर्तिगढ़ था जहाँ सुमरा लोगों से लड़ाई हो जाने के बाद वह गुजरात चला गया जहां के राजा कर्ण ने उसे पाटड़ी की जागीर सोंप दी। मरमर माता को मकवानों की कुलदेवी माना जाता है कालान्तर में मकवानों को झालावंश कहा जाने लगा। अनन्तर आदमाता अथवा शक्तिमाता को झालावंशज कुलदेवी के रूप में पूजने लगे ।
मेरी सामाजिक कहानी
राजकवि नाथूरामजी सुंदरजी कृत बृहद ग्रन्थ झालावंश वारिधि में हरपालदेव को पाटड़ी की जागीर मिलने के सम्बन्ध में वृत्तान्त दिया गया है कि हरपाल क्रान्तिगढ़ छोड़कर गुजरात में अन्हिलवाड़ा पाटन की ओर रवाना हुआ। मार्ग में उसकी प्रतापसिंह सोलंकी से भेंट हुई जो उसे पाटन में अपने घर लाया। जहाँ उसकी भेंट एक सुन्दर कन्या से हुई। वह कन्या शक्ति स्वरूपा थी। हरपाल ने राजा कर्ण से भेंट की। परिचय पाकर कर्ण ने उसको अपने दरबार में रख लिया। उस समय राजा कर्ण की रानी को बावरा नामक भूत ने त्रस्त कर रखा था। जब राजा कर्ण सिरोही से विवाह कर लौट रहा था तो मार्ग में पालकी में बैठी देवड़ी रानी के इत्र की शीशी ऐसे स्थान पर फूट गयी जहां बावरा भूत का निवास था। इत्र उस पर गिर गया और वह रानी के साथ पाटन आ गया। तब से वह रानी को सता रहा था। हरपाल ने रानी को उस भूत से मुक्ति दिलाने का निश्चय किया। वह महलों में गया और अपनी कुलदेवी मरमर माता की आराधना कर अपनी विधियों तथा उस चमत्कारी शक्तिरूपा कन्या की सहायता द्वारा भूत को प्रताड़ित करना शुरू किया। बावरा भूत ने हरपाल से उसे छोड़ने की प्रार्थना की और वचन दिया कि वह आगे से उसका सहायक बन कर काम करेगा। हरपाल ने बावरा को छोड़ दिया। हरपाल देवी हेतु बलिदान के लिए श्मशान गया। वहां शक्तिदेवी / मरमर माता प्रसन्न हुई और वर मांगने को कहा। हरपाल ने प्रतापसिंह की भैरवीरूपा कन्या से विवाह की इच्छा जताई। शक्तिदेवी ने उसे आशीर्वाद दिया। हरपाल ने उस कन्या से विवाह कर लिया।
उधर कर्ण ने उसकी रानी को प्रेतात्मा से मुक्ति दिलाने के बदले हरपाल को कुछ मांगने को कहा। इस पर शक्ति के कथनानुसार हरपाल ने उत्तर दिया कि एक रात में आपके राज्य के जितने गाँवों को तोरण बाँध दूँ, वे गाँव मुझे बक्षे जावें। राजा ने मंजूर कर लिया। हरपाल ने शक्तिदेवी और बावरा भूत की मदद से एक रात्रि में पाटड़ी सहित 2300 गाँवों में तोरण बाँध दिए। राजा को अपने वचन के अनुसार सभी गाँव हरपाल को देने पड़े। इससे राजा घबरा गया क्योंकि उस राज्य का अधिकाँश भाग हरपाल के पास चला गया था। राजा का यह हाल देखकर हरपाल ने भाल इलाके के 500 गांव राजा कर्ण की पत्नी को ‘कापड़ा’ के उपलक्ष्य में लौटा दिए।
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