17.12.18

पड़िहार वंश की कुलदेवी चामुंडा माता (सुधामाता)





राजस्थान के पाली जनपद में धरमदारी गांव में, पाली से १५ कि.मी.ऊपर पहाडी पर गाजणमाता का देवस्थान है । इस मंदिर की स्थापना १०५० वर्ष पूर्व हुई थी । मंदिर परिसर के आसपास १५ कि.मी.तक जंगल है । आषाढ शुक्ल पक्ष ९ (१३.७.२०१६)को यहां उत्सव हुआ था । इस निमित्त देवी गाजणमाता की महिमा इस लेख द्वारा प्रस्तुत कर रहे हैं ।

मंदिर का इतिहास

बहुत वर्ष पूर्व जोधपुर में राजा परिहारों का राज था । उनकी कुलदेवी चामुण्डा माता थी । अपने राजपुत्र के विवाह हेतु राजा ने देवी चामुण्डा से बारात में चलने की प्रार्थना की,तब देवी मां ने वचन दिया -मैं तेरे साथ चलती हूं । परंतु जहां मुझे कोई भक्त रोक देगा,मैं वहीं रुक जाऊंगी । बारात में जालोर जनपद के रमणीयां गांव के कृपासिंहजी भी अपनी १००० गायें लेकर आए थे । बारात जंगल से जा रही थी । साथ चल रहे रथ,घोडों और संगीत की ध्वनि से गायें डरकर भडक गईं । तब कृपासिंहजी ने गौमाता को पुकारा,हे मां !हे मां ! उसी क्षण मां चामुण्डा पहाड फाडकर अंतर्धान हुईं ! उसी दिन से गाजणमाता नाम प्रचलित हुआ । उस समय राजा के देवी मां से प्रार्थना करने पर मां ने कहा,अब मैं तुम्हारे साथ नहीं चलूंगी । अपने पुत्र के विवाह के पश्‍चात जहां तुम बंदनवार बांधने जाओगे वहां पीछे हटना क्योंकि बंदनवार बांधने के पश्‍चात छत गिर जाएगी । इससे तुम्हारी जान बच जाएगी । राजा ने विनम्रतापूर्वक मां से पूछा,इस सुनसान-घने जंगल में आपकी नित्य पूजा कौन करेगा ? मां ने कहा,जिस भक्त ने मुझे रोका है,वही मेरी पूजा करेगा । तभी से गाजणमाता की पूजा प्रारंभ हुई और उस गांव का नाम धरमदारी रखा । इसी प्रकार कृपासिंहजी के परिवार से यह पूजा आज तक संपन्न की जा रही है । जोगसिंहजी राजपुरोहितजी के पश्‍चात अब भंवरसिंहजी राजपुरोहितजी मां की पूजा-अर्चना करते हैं ।

भक्तों के निवास हेतु मंदिर में सुव्यवस्था

अ. दोनों नवरात्रि में यहां होमहवन और विशेष पूजा होती है । आषाढ मास की नवमी को गुजरात,राजस्थान से हजारों भक्त मां के दर्शन के लिए पैदल यात्रा कर अपनी मनोकामना मांगने आते हैं । पहाड पर जंगल में यह मंदिर होते हुए भी यहां अभी तक चोरी नहीं हुई।

आ. पहाड पर बसे मंदिर तक जाने के लिए पहाड के दोनों ओर से ३०० सीढियां हैं । ऊपर तक गाडी जाने की व्यवस्था भी अभी की गई है । भक्तों के निवास के लिए भी व्यवस्था उपलब्ध है ।

-श्री.भागीरथ सिंह राजपुरोहित,सिंहगड मार्ग,पुणे.

देवी मां को प्रसन्न करने के लिए…

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देवी मां की उपासना के प्रत्येक कृत्य का एक शास्त्र है । आदिशक्ति श्री दुर्गादेवी एवं अन्य सर्व देवियों के पूजन से संबंधित सामान्य कृत्यों की जानकारी आगे दी है ।

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विशिष्ट देवी को विशिष्ट फूल चढाने का अध्यात्मशास्त्रीय आधार

विशिष्ट फूलों में विशिष्ट देवता के पवित्रक, अर्थात उस देवता के सूक्ष्मातिसूक्ष्म कण आकर्षित करने की क्षमता होती है । ऐसे फूल जब देवता की मूर्ति पर चढाते हैं, तो मूर्ति को जागृत करने में सहायता मिलती है । चढाने हेतु उपयुक्त फूलों के नाम – श्री दुर्गा-मोगरा, श्री लक्ष्मी-गेंदा, श्री शारदा-रातरानी, श्री वैष्णोदेवीरजनीगंधा, श्री विंध्यवासिनी-कमल ।

ईन्दा शाखा प्रतिहार ( पडिहार , परिहार राजपूत ) ये श्री चामुण्डा देवी जी को अपनी कुलदेवी के रूप में पूजते है तथा वरदेवी के रूप में
गाजन माता को भी पूजते है , तथा देवल शाखा प्रतिहार ( पडिहार ,परिहार राजपूत ) ये सुंधा माता को अपनी कुलदेवी के रूप में पूजते है ,
पुराणो से ग्यात होता है कि भगवती दुर्गा का सातवा अवतार कालिका है , इसने दैत्य शुम्भ , निशुम्भ , और सेनापती चण्ड , मुण्ड का नाश किया था , तब से श्री कालिका जी चामुण्डा देवी जी के नाम से प्रसिद्द हुई , इसी लिये माँ श्री चामुण्डा देवी जी को आरण्यवासिनी , गाजन माता तथा अम्बरोहिया , भी कहा जाता है , पडिहार नाहडराव गाजन माता के परम भक्त थे , वही इनके वंशज पडिहार खाखू कुलदेवी के रूप में श्री चामुण्डा देवी जी की आराधना करते थे , प्रतिहार ,पडिहार , परिहार राजपूत वंशजो का श्री चामुण्डा देवी जी के साथ सम्बंधो का सर्वप्रथम सटीक पडिहार खाखू से मिलता है , पडिहार खाखू श्री चामुण्डा देवी जी की पूजा अर्चना करने चामुण्डा गॉव आते जाते थे , जो कि जोधपुर से ३० कि. मी. की दूरी पर स्थित है , घटियाला जहॉ पडिहार खाखू का निवास स्थान था , जो चामुण्डा गॉव से ४ कि. मी. की दूरी पर है ,श्री चामुण्डा देवी का मंदिर चामुण्डा गॉव में ऊँची पहाडी पर स्थित है , जिसका मुख घटियाला की ओर है , ऐसी मान्यता है कि देवी जी पडिहार खाखू जी के शरीर पर आती थी ,
** श्री चामुण्डा देवी जी ( गढ जोधपुर ) **
जोधपुर राज्य के संस्थापक राव जोधा के पितामाह राव चुण्डा जी का सम्बंध भी माता चामुण्डा देवी जी से रहा था , सलोडी से महज 5 कि. मी. की दूरी पर चामुण्डा गॉव है , वहा पर राव चुण्डा जी देवी के दर्शनार्थ आते रहते थे , वह भी देवी के परम भक्त थे , ऐसी मान्यता है कि एक बार राव चुण्डा जी गहरी नींद में सो रहे थे तभी रात में देवी जी ने स्वप्न में कहा कि सुबह घोडो का काफिला वाडी से होकर निकलेगा , घोडो कि पीठ पर सोने की ईंटे लदी होगीं वह तेरे भाग्य में ही है , सुबह ऐसा ही हुआ खजाना एवं घोडे मिल जाने के कारण उनकी शक्ति में बढोत्तरी हुई , आगे चलकर इन्दा उगमसी की पौत्री का विवाह राव चुण्डा जी के साथ हो जाने पर उसे मण्डौर का किला दहेज के रूप में मिला था , इसके पश्चात राव चुण्डा जी ने अपनी ईष्टदेवी श्री चामुण्डा देवी जी का मंदिर भी बनवाया था , यहा यह तथ्य उल्लेखनीय है कि देवी कि प्रतिष्ठा तो पडिहारो के समय हो चुकी थी , अनंतर राव चुण्डा जी ने उस स्थान पर मंदिर निर्माण करवाया था मंदिर के पास वि. सं. १४५१ का लेख भी मिलता है ।
अत: राव जोधा के समय पडिहारों की कुलदेवी श्री माँ चामुण्डा देवी जी की मूर्ति जो कि मंडौर के किले में भी स्थित थी , उसे जोधपुर के किले में स्थापित करबाई थी , राव जोधा जी तो जोधपुर बसाकर और मेहरानगढ जैसा दुर्ग बनाकर अमर हो गये परंतु मारवाड की रक्षा करने वाली परिहारों की कुलदेवी श्री चामुण्डा देवी जी को अपनी ईष्टदेवी के रूप में स्वीकार कर संपूर्ण सुरक्षा का भार माँ चामुण्डा देवी जी को सौप गये , राव जोधा ने वि. सं. १५१७ ( ई. १४६० ) में मण्डौर से श्री चामुण्डा देवी जी की मूर्ति को मंगवा कर जोधपुर के किले में स्थापित किया ,
श्री चामुण्डा महारानी जी मूलत: प्रतिहारों की कुलदेवी थी राठौरों की कुलदेवी श्री नागणेच्या माता जी है , और राव जोधा जी ने श्री चामुण्डा देवी जी को अपनी ईष्टदेवी के रूप में स्वीकार करके जोधपुर के किले में स्थापित किया था , ।।
** देवल ( प्रतिहार , परिहार ) वंश **
सुंधा माता जी का प्राचीन पावन तीर्थ राजिस्थान प्रदेश के जालौर जिले की भीनमाल तहसील की जसवंतपुरा पंचायत समिती में आये हुये सुंधा पर्वत पर है , वह भी भीनमाल से २४ मील रानीवाडा से १४ मील और जसवंतपुरा से ८ मील दूर है । सुंधा पर्वत की रमणीक एवं सुरम्य घाटी में सांगी नदी से लगभग ४०-४५ फीट ऊँची एक प्राचीन सुरंग से जुडी गुफा में अषटेश्वरी माँ चामुण्डा देवी जी का पुनीत धाम युगो युगो से सुसोभित है , इस सुगंध गिरी अथवा सौगंधिक पर्वत के नाम से लोक में " सुंधा माता " के नाम से विख्यात है , जिनको देवल प्रतिहार अपनी कुलदेवी के रूप में पूजा अर्चना करते है ।।
वंश - अग्निवंश
गोत्र - कपिल
कुलदेवी - चामुण्डा देवी

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 ( सुंधा माता)
वरदेवी - गाजन माता
कुलदेव - विष्णु भगवान



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