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10.6.25

दर्जी समाज के आराध्य संत दामोदर जी महाराज की महिमा: जूनागढ़ में अवतार: दामोदर कुंड कथा

 



   प्राचीन नगर जूनागढ़ (गुजरात) जहां दर्जी समाज के महान संत एवं गुरु दामोदर जी महाराज का आविर्भाव हुआ आज भी दर्जी समाज की आस्था का केंद्र बना हुआ है| संत दामोदर जी महाराज का जन्म विक्रम संवत 1424 चैत्र मास की पूर्णिमा (5अप्रैल 1367) को गुजरात के जूनागढ़ के एक आध्यात्मिक परिवार मे हुआ था|उनके पिता का नाम हेमचन्द्र और माता का नाम जयंती था| हेमचन्द्र जी श्री कृष्ण के परम भक्त थे| और परिवार मे धार्मिक अनुष्ठान होते रहते थे| पारिवारिक आध्यात्मिकता से प्रभावित दामोदर जी महाराज ने आजीवन ब्रह्मचर्य धर्म का पालन करते हुए एक समाज सेवक और धर्मोपदेशक का जीवन निर्वाह करने का संकल्प लिया| संत दामोदर जी महाराज के समकालीन हिन्दू संत श्री रामानंदाचार्यजी हुए थे। दामोदर वंशी दर्जी समाज के आदि पुरुष पूज्य दामोदर जी महाराज हैं। उन्हें समाज के संस्थापक और आराध्य देव के रूप में माना जाता है।दामोदर जी महाराज को समाज के लोग पूजते हैं और उनकी कथाओं और कहानियों को सुनते हैं।        दामोदर जी महाराज का जीवन सादगी और सेवा से भरा हुआ था। दामोदर जी महाराज एक महान संत थे जिन्होंने समाज के लिए कई महत्वपूर्ण संदेश दिए। उनकी रचना, "दामोदर दोहावली" में सामाजिक समरसता और सद्भाव की अवधारणा को बहुत ही सुंदरता से व्यक्त किया गया है। संत दामोदर जी महाराज के उपदेशों और ज्ञान की महानता के कारण, उनके अनुयायियों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी। वे दामोदर वंशी के नाम से जाने जाने लगे,जो उनके नाम और उनके अनुयायियों के बीच एक गहरा संबंध दर्शाता है। संत दामोदर जी एक महान आध्यात्मिक गुरु और संत थे, जिन्होंने गुजरात और भारत के अन्य हिस्सों में अपने ज्ञान और उपदेशों का प्रसार किया। उनकी शिक्षा और उपदेश सरल और सर्वग्राह्य थे, जो लोगों को उनके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने में मदद करते थे। उन्हें चमत्कारिक संत माना जाता था और लोग अपने दुख-दर्द से मुक्ति पाने के लिए उनके पास आते थे।





 दामोदर जी महाराज श्री कृष्ण भगवान के अनन्य आराधक थे, और उनकी भक्ति और समर्पण कृष्ण भगवान के प्रति अद्वितीय था। जूनागढ़ के दामोदर कुंड से उनका आध्यात्मिक संबंध होने की किंवदंतियाँ प्रचलित हैं, जो उनके जीवन और आध्यात्मिक यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। उनकी शिक्षाएँ और उपदेश आज भी लोगों को प्रेरित और मार्गदर्शन करते हैं दर्जी समाज के महान तत्वदर्शी संत दामोदर महाराज के जीवन और शिक्षाओं ने अनेक लोगों को प्रभावित किया है। उनके जीवन के अज्ञात तथ्यों पर अनुसंधान करने से उनके जीवन और कार्यों के बारे में गहराई से समझने में मदद मिल सकती है। उनकी शिक्षाएं आज भी हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत हैं और हमें एक बेहतर समाज के निर्माण में मदद कर सकती हैं उनकी जीवनी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने जीवन को दूसरों की सेवा के लिए समर्पित करना चाहिए और सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। दामोदर वंशी दर्जी समाज के लोग  दामोदर जी महाराज को आराध्य देव  मानते हैं  और पूजते हैं | उनकी जयंती और पुण्यतिथि को विशेष तौर पर मनाते हैं। दर्जी समाज के लोगों का मानना है कि श्री दामोदर जी महाराज की कृपा से वे अपने जीवन में सुख और समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं| 
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महा निर्वाण-

 दामोदर वंशी दर्जी समाज के इस महान संत का महा निर्वाण संवत 1497 मे चेत्र मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तदनुसार 27 मार्च 1440 को उनके दामोदर आश्रम मे हुआ था| दामोदर दर्जी समाज आज भी उनके बताए मार्ग पर चल रहा है जिससे उनके जीवन मे सुख समृद्धि का वास होता है| 
  दामोदर वंशी दर्जी समुदाय का गुजरात से पलायन के कारण निम्नलिखित हैं: जूनागढ़ के मुस्लिम शासक महमूद बेगड़ा के अत्याचारों और हिंदुओं को जबरन मुसलमान बनाने की वजह से कई हिंदू परिवारों को 1505 ईस्वी मे अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए गुजरात छोड़ना पड़ा। ये परिवार मध्य प्रदेश और राजस्थान में विस्थापित हो गए, जहां उन्होंने अपनी धार्मिक पहचान और संस्कृति को बनाए रखने की कोशिश की। इस घटना का उल्लेख इतिहास में मिलता है और यह एक महत्वपूर्ण अध्याय है|

 दामोदर दर्जी समाज का इतिहास :

  जाति इतिहासकारों के मतानुसार जूनागढ़ के मुस्लिम शासकों द्वारा प्रताड़ित होने ,जोर- जुल्म -अत्याचारों और जबरन इस्लामीकरण की वजह से दामोदर वंशीय दर्जी समाज के दो जत्थे गुजरात को छोड़कर मध्य प्रदेश और राजस्थान में विस्थापित हुए। 

  
पहला जत्था 1505 ईस्वी में महमूद बेगड़ा के शासनकाल में विस्थापित हुआ,और दूसरा जत्था 1610 ईस्वी में नवाब मिर्जा जस्साजी खान बाबी के शासनकाल में गुजरात मे अपने मूल स्थानों को छोड़ने पर विवश हुआ और मध्य प्रदेश व राजस्थान मे आकर रहने लगा| यह एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी जिसने कई हिंदू दर्जी परिवारों को अपने घरों और मूल स्थानों को छोड़ने के लिए मजबूर किया। उन्हें अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए एक नए स्थान पर बसना पड़ा, जो उनके लिए एक चुनौतीपूर्ण और दर्दनाक अनुभव था। 
  इन दोनों जत्थों के लोगों के गुजरात से पलायन के बीच 105 साल का अंतर होने के कारण, पहले जत्थे के लोग "जूना गुजराती दर्जी " और दूसरे जत्थे के लोग "नए गुजराती दर्जी" कहलाने लगे। दामोदर वंशी दर्जी समाज के परिवारों की गौत्र क्षत्रियों की है, जिससे यह ज्ञात होता है कि इनके पुरखे क्षत्रिय थे। 
  जूना गुजराती समाज के लोग "सेठ" उपनाम का उपयोग करते हैं, जो उनकी वंशावली और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
   दर्जी समाज की सबसे अधिक पठन सामग्री और सबसे अधिक पाठकों वाली वेबसाईट का पता है -

damodarjagat.blogspot.com 

  इस वेबसाईट के  5 लाख  50 हजार से ज्यादा पाठक हैं और इसमे प्रकाशित सामग्री वैश्विक स्तर पर दर्जी समाज का ध्यान आकर्षित करती है| 
  वेबसाईट का सम्पादन अखिल भारतीय दामोदर दर्जी महासंघ के अध्यक्ष डॉ .दयाराम आलोक जी द्वारा प्रधान कार्यालय शामगढ़ के माध्यम से किया जाता है|

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